Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Sep 2023 · 9 min read

#वी वाँट हिंदी

~ पुनर्प्रसारित

🕉

◆ #हम, #देश भारत के लोग ! ◆

● #वी वाँट हिंदी ●

जब मैं यह कहता हूँ कि अगले चुनाव में भाजपा के सांसदों की संख्या बढ़ने वाली है तो इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि वर्तमान सरकार बहुत बढ़िया काम कर रही है।

सच्ची बात यह है कि विपक्ष अपनी विश्वसनीयता तेज़ी से गंवाता जा रहा है।

जब मैं यह कहता हूँ कि आज जो लोग सरकार चला रहे हैं उन्हें अपने मन की कहने और करने के लिए कम-से-कम पंद्रह वर्ष मिलने चाहिएं तो मेरा यह विश्वास कतई नहीं है कि संसद के दोनों सदनों में बहुमत में आने के बाद यह लोग रामराज्य ले आएंगे।

बात केवल इतनी-सी है कि यदि जनसाधारण को पिटना ही है तो कम-से-कम जूते का रंग तो बदले।

इस लेख का उद्देश्य देश की जनता को हतोत्साहित करना नहीं अपितु इस ओर प्रेरित करना है कि अपने मन की बात खुलकर कहें तो अच्छे दिन आ भी सकते हैं । क्योंकि यह सरकार सामर्थ्यवान भी है और इसका मुखिया निष्कलंक है।

मैंने देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी को कुछ पत्र लिखे थे, उन्हीं में से एक यह पत्र है। मुझे पत्र की पावती तक न मिली। इसका आभास मुझे पहले से ही था। यही कारण है कि मैंने अपने पत्रों की प्रतिलिपि कुछ विशिष्ट व्यक्तियों को भी भेज दी थी जिनमें योग गुरु बाबा रामदेव भी थे। उन्होंने मेरा यह पत्र (संपादित करके) ‘योग संदेश’ के सितम्बर २०१५ के अंक में प्रकाशित कर दिया था।
२९-९-२०१८

पत्र इस प्रकार है :

*★ #वी वाँट हिन्दी ★*

प्रिय प्रधानमंत्री जी, सस्नेह नमस्कार !

पिछले दिनों भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी में लगे लोगों ने जैसा हुड़दंग मचाया और जैसी ओछी हरकतें कीं उससे उन्होंने केवल यही सिद्ध नहीं किया कि वे इस सेवा में चुने जाने के योग्य नहीं हैं, अपितु हिन्दी का अहित भी किया। यदि वे सच्चे हिन्दी-प्रेमी, राष्ट्र-प्रेमी होते तो अथक परिश्रम करके (अंग्रेज़ी भाषा सहित) परीक्षा में सफल होकर अपने-अपने नियुक्ति वाले क्षेत्र में अपने अधिकार-क्षेत्र में हिन्दी का सम्मान बढ़ाते।

मैं आपको याद दिला दूं कि जर्मनी देश के एक वैज्ञानिक ने एक अद्भुत प्रयोग किया। विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं की लिपियों के अक्षरों के मिट्टी के प्रारूप तैयार किए। जो कि भीतर से पोले थे और उनके दोनों ओर एक-एक छिद्र था। यह ठीक वैसे ही थे जैसे अपने यहाँ मेलों में मिट्टी के चिड़िया-तोते मिला करते थे, जिनके एक ओर से फूँक मारने पर दूसरी ओर से सीटी की आवाज़ निकलती थी। ठीक उसी तरह उन प्रारूपों में जब फूँक मारी गई तो एकमात्र देवनागरी लिपि ही एक ऐसी लिपि थी जिसके जिस अक्षर में फूँक मारते थे उसके दूसरी तरफ से उसी अक्षर की ध्वनि निकलती थी।

सतीश और प्रभाकर नाम के दो युवकों ने ‘बिना पैसे दुनिया का पैदल सफर’ किया और इसी नाम से अपने संस्मरण एक पुस्तक में लिखे। यह तब की बात है कि जब वे अमेरिका पहुंचे तो वहाँ के राष्ट्रपति कैनेडी महोदय की हत्या हो चुकी थी और जब स्वदेश लौटे तो नेहरु जी का देहांत हो चुका था।

उन्होंने अपने संस्मरणों में इस झूठ का पर्दाफाश किया कि अंग्रेज़ी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। अनेक देशों में उन्हें हिन्दी बोलने-समझने वाले लोग मिले और अनेक यूरोपीय देशों में भी ऐसे लोग मिले जो अंग्रेज़ी से अनजान थे।

भाषा संस्कृति की वाहक है इसलिए उसका नाम संस्कृत हुआ। बाइबल में भी लिखा है कि पहले पूरे विश्व में एक ही भाषा बोली जाती थी। स्पष्ट है कि वो संस्कृत ही थी। स्थानीय स्तर पर बोलियाँ अलग-अलग थीं। वाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमान जी जब अशोकवाटिका में सीता जी के सम्मुख प्रकट होते हैं तो अयोध्या के आस-पास की स्थानीय बोली में बात करते हैं। संस्कृत में इसलिए नहीं बोलते कि “इससे एक तो सीता जी को किसी विद्वान व्यक्ति के सम्मुख होने का भय न हो और दूसरा स्थानीय भाषा (बोली) में बात करने से आत्मीयता का भाव जगेगा”।

हिन्दी का जितना अहित हिन्दी वालों ने किया है उसका शतांश भी दूसरे लोग नहीं कर पाए। साल में एक बार हिन्दी सप्ताह अथवा हिन्दी पखवाड़ा मनाना हिन्दी का ठीक वैसा ही अपमान है जैसे ‘मदर्स डे’ मनाना। साप्ताहिक समाचार-पत्रिका हुआ करती थी ‘दिनमान’। उसके आवरणपृष्ठ पर चित्र छपा था — जिसमें दिल्ली के बोट क्लब पर जनसंघ (तब की भाजपा) द्वारा आयोजित प्रदर्शन में दो देहाती महिलाएं हाथ में पकड़े जिस प्रचारपट्ट से अपने को धूप से बचा रही थीं उस पर लिखा था, We Want Hindi (वी वाँट हिन्दी)।

आज बाबा रामदेव जी महाराज ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने पूरे देश का कई बार भ्रमण किया और हर रोज़ हज़ारों लोगों की सभाओं को संबोधित किया — हिन्दी में। उन्हें कहीं भी दुभाषिए की ज़रूरत नहीं पड़ी। लेकिन उनकी पतंजलि योगपीठ के उत्पादों पर अंग्रेज़ी की प्रधानता है। उनकी संस्था के सहयोगी संगठनों के नामों में अंग्रेज़ी की कालिमा है। यहाँ तक कि एक-दो संगठन तो ऐसे हैं जिनका पूरा नाम ही अंग्रेज़ी में है।

आपके मंत्रिमंडल के दो सहयोगी हैं, दोनों ही बहुत अच्छे वक्ता हैं; परन्तु, वार्तालाप अथवा व्याख्यान के बीच में अंग्रेज़ी का मिश्रण करना उनका स्वभाव बन चुका है। और, दु:ख की बात यह है कि वे दोनों (मेरे मतानुसार) अपनी विद्वत्ता दर्शाने के लिए ऐसा किया करते हैं।

एक समय था हिन्दी फिल्मों को दुनिया में हिन्दी के प्रचारक के रूप में देखा जाता था। यह वो समय था जब हर ऐसी फिल्म में जिसमें किसी अनाथ बच्चे की कहानी कही जाती थी, उस बच्चे को पालने वाला कोई दयालु व्यक्ति मुसलमान होता था अथवा ईसाई। और आज हिन्दी फिल्मों की भाषा न हिन्दी रही न तथाकथित हिन्दुस्तानी। आज यह हिंग्लिश भी नहीं है। क्योंकि ‘हिंग्लिश’ में भी ‘हिं’ पहले आता है। फिल्मों के नाम अंग्रेज़ी में हैं । और यदि किसी का नाम हिन्दी में है तो उसका अंग्रेज़ी में अर्थ भी साथ में बताया जाता है। हो भी क्यों न ? जनसाधारण के मनोरंजन का साधन फिल्में, अब अंग्रेज़ी-दां अमीरों द्वारा अंग्रेज़ी-दां अमीरों के लिए ही बनाई जा रही हैं।

टी. वी. चैनल, विशेषकर समाचार चैनल हिन्दी की टांग तोड़ने को अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं। समाचार अंग्रेज़ी में लिखे-भेजे जाते हैं। फिर इनका हिन्दी अनुवाद पढ़ा जाता है। और इस अनुवाद में क्या-कुछ अनर्थ हो जाता है — यह एक लंबी दु:खद कहानी है।

हिन्दी का जब इतिहास लिखा जाएगा, आज के दिनों का, तो हिन्दी के समाचारपत्रों को हिन्दी का सबसे बड़ा शत्रु लिखा जाएगा। प्रथम पृष्ठ से अंतिम पृष्ठ तक पढ़ जाइए। आपको प्रत्येक दिन अंग्रेज़ी के एक-दो नए शब्द हिन्दी में घुसपैठ करते मिल जाएंगे। आम बोलचाल की भाषा में प्रतिदिन प्रयोग में आने वाले शब्दों का स्थान अंग्रेज़ी के शब्द ले रहे हैं। पत्रकारवार्ता को पी.सी. और शवच्छेदन (पोस्टमार्टम) को पी.ऐम. तो अब बहुत छोटी बात है। केन्द्रीय विद्यालय को के.वी. कहना भी अब चलन में है । जैसे ज्ञान को ज्यान की जगह ग्यान पढ़ा जाने लगा, वैसे ही अब उद्घाटन को उद्धाटन लिखा जाना भी साधारण बात है। समाचारपत्रों के साथ प्रकाशित होने वाले परिशिष्टों के शीर्षक न केवल अंग्रेज़ी भाषा में होने लगे हैं अपितु इनकी लिपि भी रोमन होने लगी है। लाज से डूबकर मरने वाली बात तो यह है कि हिन्दी का एक समाचारपत्र अंग्रेज़ी का सही उच्चारण भी सिखाता है, प्रत्येक रविवार। और दूसरा, प्रतिदिन दो घूंट अंग्रेज़ी के पिलाता है, निर्लज्ज!

देश में सबसे बुरी दशा शिक्षण-संस्थाओं की है। आज शिक्षण-संस्थाओं में देशभक्त अथवा देशप्रेमी नहीं बन रहे। आज जो शिक्षा बच्चों को दी जा रही है उससे वे अपने देश, धर्म, परिवार और माता-पिता को हेय दृष्टि से देख रहे हैं। आने वाले कुछ वर्षों बाद स्थिति और भी विस्फोटक होने वाली है । इसकी झलक आप समाचार-चैनलों पर देख सकते हैं। ऐंकर महोदय/महोदया की भाषा, भाव-भंगिमा और वेष-भूषा ऐसी रहती है जैसे उनसे बड़ा विद्वान और ज्ञानी कोई दूसरा है ही नहीं। और, उनमें से अधिकांश न सिर्फ अंग्रेज़ी माध्यम से पढ़े हुए हैं बल्कि अंग्रेज़ी-अंग्रेज़ियत के मानसिक दास भी हैं।

पहले दूर-दूर तक पता नहीं चलता था कि कोई ऐसा शिक्षण-संस्थान भी है जहाँ अंग्रेज़ी भाषा शिक्षा का माध्यम हो। आज दूर-दराज के गांवों में भी प्राथमिक पाठशाला से ही अंग्रेज़ी माध्यम में शिक्षा देने वाले संस्थान मिल जाएंगे।

आज समाज के किसी भी क्षेत्र का व्यक्ति हो, खेल, राजनीति, व्यापार, समाजसेवा अथवा पत्रकारिता, सभी से जुड़े हुए व्यक्ति अपने अनुभव अंग्रेज़ी भाषा में ही अपनी आत्म-कथात्मक पुस्तक में लिखवाते-छपवाते हैं।

हास्यास्पद और लज्जाजनक बात तो यह है कि हॉकी, फुटबॉल और क्रिकेट आदि की टीमों के नाम अंग्रेज़ी में राईडर, राईज़र, ब्लास्टर, फास्टर और फाईटर आदि रखे जा रहे हैं। और कुतर्क यह दिया जा रहा है कि इससे खिलाड़ियों में स्फूर्ति व नवीन उत्साह का संचार होगा। इन लोगों के वश में हो तो सभी गधों को डंकी और कुत्तों को डॉगी पुकारने का नियम बनवा दें।

आज हिन्दी-हिन्दी चिल्लाने वाले अपने हस्ताक्षर अंग्रेज़ी में करते हैं। अपने घर के बाहर अपने नाम की पट्टिका अंग्रेज़ी में लिखवाते हैं। घर में कैसा भी शुभ-मंगल कार्य हो उसके निमंत्रण-पत्र अंग्रेज़ी में छपवाते हैं। अपनी दुकान, कार्यालय अथवा कारखाने का नामपट्ट अंग्रेज़ी में ही लिखवाते हैं। जबकि उनको मालूम है कि उनका सारा कार्य-व्यवहार केवल और केवल अपने देश के लोगों के साथ ही होने वाला है — आरंभ से अंत तक।

लेकिन, मैं आपसे यह सब क्यों कह रहा हूँ? हमारे पंजाब में इसे कहते हैं, “झोटे (भैंसे) वाले घर से दूध मांगना”। अरे भाई, झोटा दिखता ज़रूर है भैंस के जैसा परंतु, उससे दूध नहीं मिल सकता।

जिस व्यक्ति की सोच और मुहावरे अंग्रेज़ी में हैं उससे हिन्दी की सेवा की आशा करना ऐसा ही है जैसे मरुस्थल में पानी की खोज। मैं जानता हूँ यह मृगमरीचिका है और कुछ नहीं। नहीं तो आप ही बताइए कि यह T T T T T, P P P, B S P क्या है? ऐसे ही प्रत्येक अवसर पर अंग्रेज़ी के कुछ अक्षर आपका मुहावरा बन जाते हैं। यह अंग्रेज़ी की मानसिक दासता नहीं तो क्या है?

परन्तु, आपका भी क्या दोष? आज़ादी के बाद जन्मे अधिकांश लोगों में यही दोष है। वो हिन्दी-हिन्दी तो चिल्लाते हैं परन्तु, अंग्रेज़ी का पल्लू छोड़ने को तैयार नहीं होते। दु:ख की बात तो यह है कि निजी बातचीत में अंग्रेज़ी की अनिवार्यता और गुणों का बखान भी करते हैं।

मैंने भी जब पहली बार दुनिया को देखा तो गोरे अंग्रेज़ जा चुके थे और शासन की बागडोर काले अंग्रेज़ों के हाथों में आ चुकी थी । मेरा सौभाग्य और पूर्वजन्म के कर्मों का सुफल कि मुझे ऐसे गुरु मिले कि मुझ में ऐसा कोई दोष पनप नहीं पाया जिनका वर्णन मैं ऊपर कर चुका हूँ।

लेकिन, ऐसे लोग भी हैं जो चाहते तो हैं हिन्दी की सेवा परन्तु, दिग्भ्रमित हैं। क्षमा कीजिए, मैं आपको उन्हीं में से मानता हूँ। मेरा परामर्श है कि यदि आप हिन्दी के लिए कुछ करना चाहते हैं तो केवल इतना कीजिए कि भारत सरकार और जिस-जिस राज्य में भाजपा की सरकार है वहाँ-वहाँ सरकारी नौकरी के लिए अंग्रेज़ी की अनिवार्यता समाप्त कर दीजिए। भारत सरकार और राज्य सरकारें जो भी सूचना (विज्ञापन आदि) जनता तक पहुंचाना चाहें अंग्रेज़ी समाचार-माध्यमों को देना बंद कर दें। दूरदर्शन के समाचार-चैनल को पूरा-का-पूरा हिन्दी में कर दीजिए । विदेशी भाषा में समाचार प्रसारित करने के लिए एक नया चैनल शुरु कीजिए। जिसमें केवल अंग्रेज़ी नहीं विश्व की दूसरी प्रमुख भाषाओं को भी स्थान दिया जाए।

मेरा मानना है कि केवल इतना करने से ही हिन्दी अपना स्थान पा जाएगी। यह सब करने के लिए किसी भी तरह का कोई आर्थिक कष्ट नहीं होगा। सबसे बड़ी बात यह है कि यह सब करने में किसी का विरोध भी नहीं झेलना पड़ेगा। हाँ, उनके संबंध में कुछ नहीं कहा जा सकता जो गृहिणी को टोका करते हैं कि “आटा गूँधते हुए हिल क्यों रही हो?”

मेरे प्रिय प्रधानमंत्री महोदय, मुझे ऐसी कोई भ्रांति नहीं है कि मैं किसी भी विषय का बहुत बड़ा ज्ञानी हूँ। भाजपा की सरकार बने, आप प्रधानमंत्री बनें, ऐसी अभिलाषा मेरी और मेरे परिवार की भी थी। और, मेरे परिवार ने यथाशक्ति इसके लिए प्रयास भी किए थे। मैं यह भी जानता हूँ कि आपकी नीयत में खोट नहीं है।

मैं यह जो पत्र आपको लिख रहा हूँ केवल एक जागरूक नागरिक के अधिकार से लिख रहा हूँ। चुनाव परिणाम आने और सरकार के गठन के बीच के दिनों में कुछ ऐसी घटनाएँ घटीं कि जब आप प्रधानमंत्री-पद की शपथ ले रहे थे तब मैं आपको पत्र लिख रहा था। विभिन्न विषयों पर मैंने पत्र लिखे। यह उनमें से दसवां है। अगला पत्र अंतिम होगा। बीच-बीच में चुनाव आ जाने और मेरी शारीरिक अस्त-व्यस्तताओं के कारण पत्र भेजने में देरी होती रही।

मेरा अंतिम पत्र वास्तव में पहला था लेकिन, कारणवश मैंने उसे रोक लिया और अंतिम क्रमांक दे दिया। आशा करता हूँ कि जिन समस्याओं की मैंने चर्चा की है और समाधान हेतु जो सुझाव दिए हैं उन पर विचार करेंगे।

मैंने जिन महानुभावों को पत्रों की प्रतिलिपि भेजी है वे सभी आपके संपर्क में हैं अथवा आपके सहयोगी हैं। अतः मुझे विश्वास है कि यदि मेरे पत्र आपके सामने न भी आ पाए तो वे सज्जन व्यक्ति मेरी बात आप तक पहुंचाएंगे।

आपका शुभेच्छुक
#वेदप्रकाश लाम्बा
२२१, रामपुरा, यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२
पत्र भेजने की तिथि : २०-११-२०१४
हे इस लेख के सुधि पाठक ! बात मन को छू गई हो तो अपने मित्रों तक पहुंचाएं।
धन्यवाद !
-वेदप्रकाश लाम्बा

Language: Hindi
64 Views

You may also like these posts

सुख दुख के साथी
सुख दुख के साथी
Annu Gurjar
माँ वीणा वरदायिनी, बनकर चंचल भोर ।
माँ वीणा वरदायिनी, बनकर चंचल भोर ।
जगदीश शर्मा सहज
डॉ अरुण कुमार शास्त्री एक अबोध बालक
डॉ अरुण कुमार शास्त्री एक अबोध बालक
DR ARUN KUMAR SHASTRI
मत जागरूकता
मत जागरूकता
Juhi Grover
3428⚘ *पूर्णिका* ⚘
3428⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
जंगल जंगल जाकर हमने
जंगल जंगल जाकर हमने
Akash Agam
inner voice!
inner voice!
कविता झा ‘गीत’
"आँखों की नमी"
Dr. Kishan tandon kranti
मिलने को उनसे दिल तो बहुत है बेताब मेरा
मिलने को उनसे दिल तो बहुत है बेताब मेरा
gurudeenverma198
कोई किसी के लिए जरुरी नहीं होता मुर्शद ,
कोई किसी के लिए जरुरी नहीं होता मुर्शद ,
शेखर सिंह
कॉलेज वाला प्यार
कॉलेज वाला प्यार
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
अब मत पूछो
अब मत पूछो
Bindesh kumar jha
आँखों मे नये रंग लगा कर तो देखिए
आँखों मे नये रंग लगा कर तो देखिए
MEENU SHARMA
ग़म मौत के ......(.एक रचना )
ग़म मौत के ......(.एक रचना )
sushil sarna
धूप  में  निकलो  घटाओं  में नहा कर देखो।
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो।
इशरत हिदायत ख़ान
आईना ने आज़ सच बोल दिया
आईना ने आज़ सच बोल दिया
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
जय श्री राम
जय श्री राम
Indu Singh
नम आंखों से ओझल होते देखी किरण सुबह की
नम आंखों से ओझल होते देखी किरण सुबह की
Abhinesh Sharma
मौत के बाज़ार में मारा गया मुझे।
मौत के बाज़ार में मारा गया मुझे।
Phool gufran
अर्थहीन हो गई पंक्तियां कविताओं में धार कहां है।
अर्थहीन हो गई पंक्तियां कविताओं में धार कहां है।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
कुछ ज़ब्त भी
कुछ ज़ब्त भी
Dr fauzia Naseem shad
Why does Not Heaven Have Visiting Hours?
Why does Not Heaven Have Visiting Hours?
Manisha Manjari
Kya ajeeb baat thi
Kya ajeeb baat thi
shabina. Naaz
निश्छल प्रेम के बदले वंचना
निश्छल प्रेम के बदले वंचना
Koमल कुmari
इक चमन छोड़ आये वतन के लिए
इक चमन छोड़ आये वतन के लिए
Mahesh Tiwari 'Ayan'
आप हँसते हैं तो हँसते क्यूँ है
आप हँसते हैं तो हँसते क्यूँ है
Shweta Soni
🥀 * गुरु चरणों की धूल*🥀
🥀 * गुरु चरणों की धूल*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
बेटी है हम हमें भी शान से जीने दो
बेटी है हम हमें भी शान से जीने दो
SHAMA PARVEEN
हमने तुम्हें क्या समझा था,
हमने तुम्हें क्या समझा था,
ओनिका सेतिया 'अनु '
नफ़्स
नफ़्स
निकेश कुमार ठाकुर
Loading...