वीर
हे भारत माँ ,,
तेरे लाडले वीर ।
चले तुझे रिझाने ,
तेरी माटी का कर्जा
चले वीर उठाने ।
वीरों की जिंदगी अपने कन्थो पर उठा करती ,,
वर्णा दूसरे के कन्थो पर जनाजे उठा करते ।
आज भी राष्ट्र पर आतंकी का प्रहार है ,,
वीरों के जोश में आग डटकर सीमा पर उस ओर वार है ।
भले वीरों की मांग उज्जड गई
जलता दीपक बुझ गया ,,
माँ की गोद सुनी होकर पिता का सहरा ही उठ गया ।
वो वतन की गोद में हँसते खेलते रहे बारूदों में,,
भारत माँ की माटी में उगले सोने को काला छुपा कर,,
,
लालची नेता बने गद्दारो में ।
क्यों भूल गए वीरों के बलिदानों को ,,
जो वतन के लिए लड़े थे अरमानों को।।
उसकी सांसों में तकदीर
भारत माँ की आशुओ में ,,
आज हम हे आजाद ,,वीरों की ही दुआओ में ।
आज हम जो हे वीरों की ही बदौलत है ,,
भारत माँ के बच्चे हे हम राष्ट्र पूंजी की दौलत है ।।
ऐसे बलिदानी वीरों को सदा करे प्रवीण सलाम ,,,,
राष्ट्र भक्त था वो वीर अब्दुल कलाम ।
✍✍✍प्रवीण शर्मा ताल
जिला रतलाम
स्वरचित कापीराइट कविता
टी एल एम् ग्रुप संचालक
दिनाक 12/04/2018