वीर हिन्द के वासी हम
“हम वीर हिन्द के वासी है
हमसे ना टकराना तुम
हो जाओगे खण्ड-खण्ड प्रतिखण्ड
हमसे ना टकराना तुम,
क्या भूल गए उस सागर को
एक घूंट में पी डाला था जिसको
या भूल गए उस चाँद को
पल भर में मर्दन कर डाला था जिसका ,
कहदो सूरज को छिप जाये जाके
माँ के अपने आँचल में
हमसे ना टकराना तुम
हम वीर हिन्द के वासी है ,
औकात क्या इन गीदड़ो की
हमने शेरों के जबड़ो को चीरा है
पनि का ना रखते शौंक कभी
सदा खून से होली हमने खेला है ,
हमसे ना टकराना तुम
हम वीर हिन्द के वासी है ||”