वीर हनुमान
बालपन में हनुमान थे बहुत ही शैतान
साधु संतों को सताते वो होकर जान
भूल जाओ शक्तियां तुम देते श्राप संत
पर बजरंगी नटखटपन का था न अन्त
बालपन निगल रहे सूर्य को समझ फल
इन्द्र वज्र का प्रहार हुआ था उसी पल
फूटी ठुड्डी पवन देव ने रोका वायु प्रवाह
हो कर क्षम्य इन्द्र खत्म करे वज्र प्रभाव
ज्ञानी सूर्य को अंजनि सुत बनाए गुरू
देने को अलौकिक ज्ञान सूर्यदेव शुरु
शिक्षा देते सूर्य देव फूले नहीं समाते है
है शिष्य जब हनुमंत सोच इतराते है
पा शिक्षा बोले हनुमंत दूँ गुरू दक्षिणा
करो मदद सुग्रीव की है गुरू दक्षिणा