वीर-स्मृति स्मारक
कैप्टन उदयवीर सिंह कुछ समय पूर्व ही भारतीय सेना में शामिल होकर अपनी पहली पोस्टिंग परजैसलमेर(राजस्थान) पहुँचे थे।
बचपन से उदयवीर भारतीय सेना के प्रति विशेष लगाव रखते थे। उनके युवावस्था में पहुँचते-पहुँचते उनका लगाव जुनून में बदल गया और समय के साथ उदयवीर ने आर्मी ज्वाइन कर ली। वैसे तो स्वयं उदयवीर पंजाब प्रांत से थे। किन्तु पहली पोस्टिंग पर वह जैसलमेर आर्मी हैडक्वार्टर (आर्मी स्टेशन) आये थे।
पोस्टिंग अभी नयी होने तथा इलाके के विषय में जानकारी प्राप्त के लिये एक शाम कैप्टन उदयवीर अपने दो साथियों के साथ शहर में गश्त के तौर पर घूमने निकले। घूमते-घूमते वह शहर के बाहर एक स्थान पर जा पहुँचे, जहाँ एक बड़ी सी हवेली जो जैसलमेर की प्राचीन बनावट के अनुसार पीले पत्थरों द्वारा सुसज्जित की गयी थी। हवेली का सौन्दर्य व बाहरी रखरखाव व्यक्ति को सहज ही अपनी ओर आकर्षित करता प्रतीत होता था। शाम अब कुछधुंधलाने सी लगी थी। हवेली में चहुँ ओर पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था थी, जो हवेली के बाहरी हिस्सों से ही स्पष्ट जाहिर हो रही थी। उदयवीर इस सबके आकर्षण से स्वयं को इस हवेली की ओर खिंचता हुआ महसूस कर रहे थे। हवेली का एक भाग विशेष रूप से उन्हें आकर्षित कर रहा था। इस हिस्से में न केवल रोशनीकी अद्भुत जगमगाहट थी, अपितु दीपक भी जलाकर प्रकाशित किये गये थे।
उदयवीर यह सब देखकर अपनी उत्सुकता दबा न सके। उन्होंने अपने साथियों से इस बारे जानना चाहा तो उनके एक साथी रघुनाथ ने जोकि जैसलमेर में पहले से पोस्टिंग पर था, बताया कि यह हवेली यहाँ के प्रसिद्ध व्यावसायिक घराने की थी जिसका व्यवसाय देश-विदेश में फैला हुआ था। इस हवेली के मालिक जगन्नाथजी बहुत
सहज व धार्मिक स्वभाव वाले व्यक्ति थे। साथ ही राष्ट्रभक्ति उनके परिवार का विशेष गुण था। उनका एक सुपुत्र भारतीय सेना में मेजर था। उसकी पोस्टिंग जम्मू सेक्टर में थी।पोस्टिंग के कुछ वर्ष बाद वह छुट्टी पर घर लौटा तो सारा घर उसके विवाह की तैयारी में मगन था। हर तरफ चहल-पहल, रौनक और रोशनी थी।
वर्षों बाद बेटा छुट्टी पर लौटा उस पर उसका ब्याह, सारा परिवार खुशी से झूम रहा था। विवाह हँसी-खुशी शुभ मुहूर्त में सम्पन्न हुआ। बहू सहित बेटा घर लौटा। हर तरफ उत्सव सा वातावरण था। किन्तु विवाह के दो दिन बाद ही बेटे की छुट्टी कैन्सिल होने के आदेश के साथ बेटा सीमा पर अपनी ड्यूटी पर लौट गया। आतंकवादी गतिविधियों के चलते उसने एक बड़े आर्मी आपरेशन का हिस्सा बनकर अपना कर्तव्य निभाते हुए अपना सर्वस्व राष्ट्र पर न्यौछावर कर दिया। विवाह के मात्र सात ही दिनों में तिरंगे में लिपटकर बेटा वापस घर लौटा।
किन्तु राष्ट्रभक्त पिता एवं नवविवाहित पत्नी सहित समस्त परिवार के सदस्यों के चेहरे राष्ट्रभक्ति के गर्व एवं तेज से जगमगा रहे थे।
आसपास के समस्त क्षेत्रों में बलिदान की चर्चा थी। जनसमुदाय का एक सैलाब सा हवेली के सामने उमड़ पड़ा था, जब तिरंगे में लिपटे जवान को अंतिम विदाई दी गयी थी। जब बेटा घर से अपने कर्तव्य पालन हेतु गया था, घर उसके विवाह की खुशी में रोशनी से जगमगा रहा था और जब तिरंगे में लिपटे बेटे की अंतिम विदाई हुई तो भी घर में उस रोशनी को जगमग रखकरएवं दीप प्रज्वलित कर बेटे के बलिदान का उत्सव मनाया गया।
तत्पश्चात उसके पिता जगन्नाथजी ने हवेली के बाहर के एक हिस्से को अपने वीर पुत्र की स्मृति में वीर स्मृतिस्मारक के नाम से संग्रहालय के रूपमें विकसित कर अपने पुत्र की नवविवाहित पत्नी को इस स्मारक
एवं इससे जुड़े संग्रहालय की समस्त व्यवस्था सौंपकर इस संग्रहालय को देश के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाले समस्त वीर सैनिक परिवारों के सहयोग हेतु समर्पित कर दिया।
तब से हवेली का यह भाग इसी प्रकार वीर स्मृति स्मारक के रूप में रौशनी से जगमगाता रहता है। स्थानीय लोगों के अतिरिक्त बाहर से आने वाले अनेक
देशप्रेमी इस स्मारक पर दीप-प्रजवलित कर राष्ट्र के वीर-सैनिकों अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं।
साथी द्वारा दी जानकारी प्राप्त कर उदयवीर का हृदय गर्व एवं देशभक्ति से ओतप्रोत हो गया कि वह स्वयं भी तो भारतीय सेना का एक हिस्सा हैं, ऐसा सोचकर उन्होंने भी जाकर हवेली में दीप प्रज्वलित कर वीर स्मृति स्मारक पर अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित कर मन ही मन देश के प्रति अपने कर्तव्य निर्वहन का प्रण दोहराया और साथियों सहित आर्मी-स्टेशन लौट आये।
रचनाकार :- कंचन खन्ना, मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत)।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार)।
दिनांक :- ०५/०८/२०२२.