‘वीर सैनिक’
बीज वीरता के मैं, सदा बोता रहा…
बात ये नहीं कि, मैं यहाँ सोता रहा…
न कभी पीछे हटा हूँ, दुश्मनों के खौफ़ से…
एक पाँव पर भी, खडा़ रहा मैं जोश से…
दाग जो भी थे धरा में, उनको मैं धोता रहा…
बीज वीरता के मैं,सदा बोता रहा…
था तू कायर, पीछे से वार जो कर गया…
बिन लडे़ रणबांकुरों से, मात तू खा गया …
बारूद काँधे पे अपनी, तू सदा ढोता रहा…
बीज वीरता के,मैं सदा बोता रहा…
एक दिन अँधेरों के,साये में तू खो जाएगा…
इस जहाँ से तेरा, नामोनिशां ही, मिट जाएगा…
काफिर सुन तुझेमें,सदा ईमान का टोटा रहा…
वीरता के बीज, मैं सदा बोता रहा …
हुआ हूँ शहीद, अमर जवान मैं कहलाऊँगा…
करेगी दुनिया याद, शान से पूजा जाऊँगा ..
आतंकी नाम से, बदनाम विश्व में,तू सदा होता रहा…
बीज वीरता के, मैं सदा बोता रहा…
बात ये नहीं, कि मैं यहाँ सोता रहा…