वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप
था एकलिंग का महाराणा, जिसकी तलवार भवानी थी,
घोड़े चेतक की चाल जहाँ, हल्दीघाटी अभिमानी थीं।
शत्रु के सम्मुख उठा भाल, झुक जाना था स्वीकार नहीं,
कहता हम वंशज शंकर के, डर जाने का अधिकार नही।
महलों को छोड़ दिया उसने, चल दिया कँटीली राहों में,
पाँव जड़ित कुन्दन से, अब शूल लगे उन पावों मे।
भोजन में तिनके की रोटी, छप्पन भोगो को त्याग दिया,
स्वतन्त्रता के हवन कुण्ड में, अपना सब कुछ वार दिया।
विपदा पर विपदा आई, किन्तु वो पथ में रुका नही,
थे कई प्रलोभन सम्मुख में, किन्तु फिर भी वो झुका नहीं।।
धन वैभव त्याग दिया उसने, लक्ष्य एक था आँखों में,
सौगंध एकलिंग की खाकर, ले लिया काल को हाथों में।
देखा जो उसका रौद्ररूप, डर गए शत्रु तलवारों से,
घबरा घबरा कर भाग गए, जल गए सिंह अंगारो से ।
हे मात धन्य मेवाड़ धन्य, राणा की अमर जवानी से,
काल स्वयं जो सम्मुख था, रण गूंजा मात भवानी से।
है धन्य धन्य मेवाड़ धरा, जिसमे राणा ने जन्म लिया,
सर्वस्व लुटाकर के जिसने, जो स्वाभिमान का पान किया
रवि यादव, कवि
कोटा, राजस्थान
9571796024