वीर बाल दिवस
यह वह सप्ताह है चला हुआ, जिसमे बलिदान गुरू के लाल हुए।
चारों थे शाहीबजादे वो, और देश धर्म पर बलिदान हुए।।1।।
वह निर्भय होकर रहे सदा, शत्रु पर भी यलगार हुए।
21 से लेकर 26 तक, बलिदान हमारे मददगार हुए।।2।।
17 की उम्र मे वो अजित सिंह, मन जीत बने और शहीद हुए।
14 की उम्र के जुझार सिंह, भाई की शहादत ना भूल सके।।3।।
ले आशीष पिता का बन रणचंडी, शत्रु पर वो भी टूट पड़े।
ऐसा शौर्य और वीरता हमने, चमकौर के रण मे देखी थी।।4।।
एक ही युद्ध मे दो लाल गये, और पिता फख्र से लड़ते थे।
अभी कहा गम ये रूकना था, दो नन्हे अभी भी बाकी थे।।5।।
धर्म का मान बढ़ाना था, बलिदान इन्हे हो जाना था।
वो चिने गए दीवारो मे, सरहिन्द आज तक शर्मिन्दा है।।6।।
वो धर्म त्याग इस्लाम कुबूले, ऐसा लालच मिलता था।
वो सर को ऊँचा किये हुए, पर इस्लाम नही कबूला था।।7।।
बस धर्म का गान किया जबतक, प्राण उन्ही मे जिन्दा थे।
जब 7 वर्ष के जोरावर, गमगीन हुए और रोये थे।।8।।
तब 5 वर्ष के फतेह सिंह, गर्जन कर के बोले थे।
तुम कायर हो या डरे हुए, जो अश्रु धार बहाते हो।।9।।
हम बलिदान धर्म पर होते है, क्यो नाहक ही पछताते हो।
जब जोरावर बोले भाई मेरे, मैं तुमसे पहले आया था।।10।।
तुम मुझसे पहले शहीद धर्म पर होने को भी आतुर हो।
वो उम्र मे बस 7 और 5 के थे, पर स्वाभिमान बहुत ही बाकी था।।11।।
हम करे नमन उन गुरूओ को, उनकी जननी माताओ को।
जो धर्म ध्वजा लहराने को, हमसब का धर्म बचाने को।।12।।
आये और आकर चले गए, देकर पहचान चले गए।
पर हम निर्लज्ज अभी से भटक गए, गुरूओ की वाणी भूल गए।।13।।
हम उपकार भूलाकर गुरूओ का, इस्लाम के पहरेदार बने।
कैसे हम मुँह को दिखाएंगे, जब दागदार हो जाएंगे।।14।।
झुकी हुई है जो धर्म ध्वजा, ऊँचा इसको ले जाना है।
कन्धे से कन्धा मिला हमे, गुरूओ का मान बढ़ाना है।।15।।
ललकार चलो हुंकार भरो, गुरूओ का कर्ज चुकाना है।
सेन्टा बन कर गुरूओ का, अपमान हमे ना करना है।।16।।