??वीर पुरुष ही वीर पुकारे??
जग में न कोई सानी हो उस वीर पुरुष की बुद्धि का।
मातृभूमि की रक्षा के हित पालन करें जो निज शक्ति का।
निज गौरव को ताक पर रख के दमन करें जो दुश्मन का।
उत्पन्न करें वह वेग तरंगें, उपयोग करें बल, आयुध का।
संस्कृति बसी हो रोम-रोम में, गर्व भरा हो मस्तक जिसका।
हर हाल में शत्रुजय करनी है, ऐसा हो परमलक्ष्य जिसका।
सिन्धु जैसी शान्ति लिए हो, समय मिले तो क्रान्ति भी कर दें।
सरिता जैसा मार्ग चुने और ऊँचे गिरि को पार भी कर दें।
वाणी उसकी धर्ममयी हो, कार्यों में धर्म सुगन्ध आए।
गरीब जनों की सहयोग में वह, खुद दौड़ा चला जाए।
सदैव चित्त प्रसन्न रहे, वाणी उसकी ओजस्वी हो।
कायल हो उसकी बुद्धि चातुर्य का शत्रु, ऐसा वह तेजस्वी हो।
दया भरी हो ऐसी जैसे, सन्त हृदय हर कोई पुकारे।
चंहूँ दिशाओं में उसके प्रति हर कोई वीर पुरुष ही वीर पुकारे।
##अभिषेक पाराशर (9411931822)##