वीर गाथा
क्या सुनाएं
उठती-गिरती लहरों पर
आओ कोई गीत लिखें
तुम अपनी व्यथा कहो
हम अपनी कथा कहें..
क्या सुनाएं तुमको गाथा
क्या बताएं अभिलाषा
रिक्त-सिक्त वसंत खड़ा है
कहें किससे मन की भाषा।
रेखाओं में सिंदूर घिरा है
मन विचलित भय खड़ा है।
नादान, भोली ये जगराशि,
आतुर अंक भूचाल बड़ा है।।
द्वार-द्वार वंदन सूने हैं
तिरंगे में संताप सजा है
हस्तगत क्रंदन कोने हैं
कैसा ये विधान लिखा है।।
-सूर्यकांत द्विवेदी