वीरों की सौगंध
मुक्तक
” उस नज़र को झुका के ही मानेगें हम
जिस नजर ने धरती माँ पर आँख उठायी है
अपनी ताकत से सर कुचल देंगे हम
आखिरी सांस तक अब ये सौगंध खायी है ”
कविता-
बहुत धोका खा चुके और नहीं खायेगें हम
देश के लिए अमर बलिदानी बन जायेंगे हम !
जिंदगी का हर रूख बदलकर रख देंगें हम
वक्त की आवाज के साथ जुड़ते चलेगे हम !
उठी जो कहर की नज़र ए मेरे वतन तुझ पर
उस नज़र को मिटटी में मिलाकर ही मानेगें हम !
जो कदम ग़ैर का होगा निशाँ तक मिटा देंगे हम
दीवार आयेगी उसे ठोकरों से गिराते जायेगे हम !
हरगीज मिटने नहीं देगें अपनी आजादी को हम
संगीन पर रख माथा शहीद होते जायेगें हम !
अलग नाम – धर्म कुछ भी हो पर एक है हम
दिल से दिल की जोत जलाते ही जायेंगे हम !
जब तक साँस रहेगी देश के लिए जियेगें हम
जन्म लिया इस माटी में पूजेंगे इसे हम !
हम सब पर है उपकार तेरा, ऐ-धरती माँ
हर डाल के फूल तेरी पूजा में लायेगे हम !
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जयति जैन (नूतन) ‘शानू’……. रानीपुर झांसी