वीरों की कुर्बानी
कैसे ना याद करूं मैं,उन वीरों की कुर्बानी को,
जो मर गए देके हमें इस आजादी को।
सींचा था जिसने इस धरती को, अपने खून की होली से,
कैसे भूलेंगे हम उनकी कुर्बानी को।
देखा था जो सपना, आजाद भगत ने ,
पूरा करना है वो हमको ,देकर प्राण भी अपने।
जब भी दुश्मन हम पर ,राज चलाना चाहेगा,
कारगिल का युद्ध उन्हें यह याद दिलाएगा।
कि कमजोर नहीं हम ,जो दुश्मन से डर जाएंगे,
जब भरेगा गर्जना हिमालय, अपनी ऊंची चोटी से,
दुश्मन के रोंगटे खड़े हो जाएंगे ,उसकी एक ही बोली में।
उन वीरों पर नाज है हमें, जो लड़ते हैं सीमा पर,
मर गए जो लड़ते-लड़ते सीमा पर, अमर रहेंगे वह हमेशा इतिहास के पन्नों में।