वीरान घर की दास्तान
है टूटी साइकिल घर के सामने
और दरवाज़ा भी टूट चुका है
लगता है कोई रहता नहीं है यहां
और वक्त भी इससे रूठ चुका है।।
रहती थी कभी खुशियां इसमें
गूंजती थी किलकारियां भी
लोग रहते थे जो यहां पर
थी उनमें भरी भावनाएं भी।।
था साया मां का इस घर पर
बच्चों को प्यार मिलता था
देखकर नटखट शरारतें बच्चों
की, सबका चेहरा खिलता था।।
फिर न जाने क्या हो गया था
हंसता खेलता घर बर्बाद हो गया था
हो जो भी वजह इसकी लेकिन
घर तो ये उसी दिन वीरान हो गया था।।
गूंजती थी इस घर में जो आवाजें
न जाने अचानक कहां खो गई थी
अब तो दीवारें भी इस घर की
देख इस वीराने को डर गई थी।।
जो मैं आया हूं आज यहां पर
हालत अच्छे नहीं दिख रहे
रहती थी रौनक जिनमें, आज
वो कमरे भी अब बिक रहे।।
खरीदार है इस घर के बहुत
पुरानी यादों को कोई खरीद न पायेगा
आएगा रहने इसमें जो अब
इस घर में वो ही नई यादें बनाएगा।।