वीरता की मिसाल –झाँसी की रानी
वीरता की मिसाल –झाँसी की रानी
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*मोरोपंत ताम्बे की बेटी
मणिकर्णिका ताम्बे थी ।
नाना की थी बहन छबीली
लक्ष्मीबाई झाँसी थी ।
हुआ विवाह झाँसी नरेश से
लक्ष्मी नेवलेकर बन झाँसी में आई थी । गंगाधर था नाम पति का
साथ अधिक न रह पाई थी ।
अठराह साल में ही लक्ष्मी
गंगा की विधवा कहलाई थी ।
निसंतान मरे थे राजा
झाँसी पर विपदा आई थी ।
उठी तलवार तब झाँसी की
अंग्रेजों की शामत आई थी ।
झाँसी की खातिर रणभूमि में
वीरगति ही उसने पाई थी ।
वीरों जैसी थी वीरांगना
ह्यूरोज़ भी उससे घबराया था ।
झाँसी को देख रण मैदान में
उसे पसीना आया था ।
गूँज उठी तलवार रण में
रक्त लालिमा छाई थी ।
लक्ष्मीबाई की कृपाण
जब मयान छोड़कर आई थी ।
क्रोध से उसकी धरती क्या
अंबर भी घबराया था ।
गर्जन सुनकर नभ ने भी
रक्तिम जल ही बरसाया था ।
एलिस ने भेजा संदेश
झाँसी को मिलाने का ।
रानी ने इनकार किया
नहीं दिया इंच भी झाँसी का ।
कालपी पर अधिकार कर
ग्वालियर को भी जीत लिया ।
किंग्ज़ रॉयल के खिलाफ
रानी ने युद्ध आरंभ किया ।
राजरतन घोड़े पर रानी
रणभूमि पर उतर गई ।
नहर पार नव तुरंग करे न
रानी पल मैं समझ गई ।
लड़ी वीरता से लक्ष्मी
घायल मन तन दोनों से हुई ।
घोड़े से वह गिरी वहीँ
रक्तिम धरती सौभाग्य हुई ।
पोशाक पुरुष की थी पहनी
अंग्रेजी सैनिक पाए न जान ।
समझे घायल सैनिक है वह
छोड़ वहीं चले गए नादान ।
गंगादास ले गए थे मठ पर
घायल लक्ष्मी पल अंतिम था ।
झाँसी को गंगा जल देकर
अंतिम क्षण मन शांत किया ।
लक्ष्मीबाई ने अंतिम इच्छा को
गंगादास से कह दिया ।
गोरे मृतदेह न हाथ लगाएँ
उससे यह प्रण तुरंत ही ले लिया ।
ऐसे थी वीरांगना लक्ष्मी
झाँसी की रानी कहलाई ।
अपने वीर कृत्यों से ही वह
भारत की मर्दानी बन पाई ।
अट्ठारह सौ सत्तावन की
वह तलवार शहीद हुई ।
स्वतंत्र भारत की चिंगारी को
ज्वलंत कर वह प्रसिद्ध हुई ।
किया था भागीरथी का रोशन नाम
वह बेटी,बहन,बहू भी थी ।
वह देश की शक्ति नारी ही थी
जिससे मातृभूमि सौभाग्य हुई ।
विजयी हुई वह नारी
जिसने वीरगति को प्राप्त किया ।
बिना लिए लोहा किसी से
रणभूमी को कृतार्थ किया ।