वीणापाणि वेदमाता!
वीणापाणि वेदमाता!,
दिव्यालंकारभूषिता,
वर दे।
सर्वत्र व्याप्त,
भूमण्डल मे,
अज्ञान तिमिर,
को छिन्न- भिन्न कर,
ज्ञान -ज्योति से,
मानव के अन्तर्तम को,
ज्योतिर्मय कर,
जगमग,
कर दे।
मानवीय मेधा को,
शक्तिकृत कर,
दिव्य शब्द की,
नाद शक्ति को,
मानव के मानस में,
भर दे।
–मौलिक एवम स्वरचित–
अरुण कुमार कुलश्रेष्ठ
लखनऊ (उ.प्र.)