विस्तार स्वप्न का
विस्तार स्वप्न का
स्वप्न बाहें फैला झूमता है
हर गली गली घूमता है
बहते हर पंख को वो चूमता है
विस्तृत हो स्वप्न
धरती गगन नापता है
बादलों में
अपना स्वप्न छापता है
ओस की हर बूँद में
घर को बसाता है,
स्वप्न का प्रसार है इतना
सूक्ष्म से कण से पहाड़ नापता है
Padmaja Raghav