विष का प्याला
हे शिव विष का सघन ज्वार है
मन में भी अति द्वन्द्ध अपार है।
विष का प्याला मेरे कर में
निश्चय ही ये पीना होगा ।
किन्तु साथ ये शर्त लगी है
तुमको फिर जीना भी होगा।
हे प्रभु तुम तो हो सर्वेश्वर
तभी कण्ठ विष धार लिया ।
किन्तु यहां थोड़े से विष ने
तन मन सब विस्तार किया ।
फैल रहा है गरल रक्त में
बुद्धि तंत्र सब नष्ट हुआ है ।
तन मन दोनो ही बेसुध
सर्वत्र गरल आविष्ट हुआ है ।
तुम ही कोई राह निकालो
गरल सरल सा हो जाये ।
कुम्हलाते से इन पल छिन को
मेह अमिय का मिल जाये ।