विष्णुपद छंद
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( विष्णुपद छंद )
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मंजिल उसको ही मिल पाती, जो बिन रुके चले ।
ज्ञान नहीं जिनको मंजिल का, जाते वही छले ।।
मंजिल दूर पुकारे सुन तो, आ चल साथ चलें ।
दूर करें पथ का अँधियारा, बनकर ‘ज्योति’ जलें ।।७
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राधे…राधे….!
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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(छंद मंजूषा से)