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18 Aug 2022 · 4 min read

विष्णुपद छंद और विधाएँ

विष्णुपद छंद और विधाएँ

चार चरण के विष्णुपद छंद
विष्णुपद छंद , 16 – 10 , पदांत दीर्घ

धवल चाँदनी हरदम रहती , घर में बनठन के |
बेटी की आबाज जहाँ पर , सुबह शाम खनके |
होती रहती चहल-पहल है , बेटी घर जिनके ||
उड़कर हँसते चिड़ियों जैसे , कोनों के तिनके |

पावन कविता वह होती है , जिसमें नेह रहे |
छिपा रहे संदेश सुहाना , रस की धार बहे ||
जिंदा रखती देश सदा ही , सुंदर सी कविता |
फैला करती अंतरमन में ,बनकर के सविता‌ ||

मिट्टी‌ से चंदन हो जाता , ढेर‌ लगें धन के |
बेटी हाथ अमोलक जानो , भाग्य जगें मन के ||
एक‌ नजर से बेटी देखो , हैं हाथ‌ यतन के |
आंंखे लगती प्यारी उसकी, ज्यों पुष्प चमन के‌ ||

बोल बोलती बेटी मीठी , जब अपनेपन के |
वहाँ समझिए कहना उसका, कुछ अर्थ कथन के ||
बेटी पग शुभ घर में जानो , है‌ं कर्म सृजन के‌ |
हर बोली में बात विचारें , हैं धर्म वचन के ||

भाग्य प्रबल बेटी का होता , हैं भाव मनन के |
विचार देखता जब बेटी के , हैं सब चिन्तन के ||
काम काज की मूरत बेटी , हैं ‌भाव लगन के‌‌ |
सदा‌ प्रकाशित घर को करती , हैं गान स्वजन के‌ ||

सुभाष ‌सिंघई
~~~~~~~
मुक्तक में

घवल चाँदनी हरदम रहती , घर में बनठन के |
बेटी की आबाज जहाँ पर , सुबह शाम खनके |
‌सदा महकते चंदन जैसे , कोनें भी घर में –
बेटी पावन रखती अंदर , भाव सदा मन के |

सुभाष ‌सिंघई
~~~~~~~~~~~~~~~
विष्णुपद छंद में गीत

धवल चाँदनी हरदम रहती ,घर में बन ठन के | मुखड़ा
बेटी की आबाज जहाँ पर , सुबह शाम खनके || टेक

रहती है मुस्कान सदा ही , बेटी घर जिनके | अंतरा
उड़कर हँसते चिड़ियों जैसे , कोनों के तिनके ||
मिट्टी‌ से चंदन हो जाता , ढेर‌ लगे धन के | पूरक
बेटी की आबाज जहाँ पर , सुबह शाम खनके || टेक

हाथ अमोलक बेटी जानो , भाग्य जगें मन के | अंतरा
रोम -रोम भी पुलकित होते, अपने निज तन के ||
पुष्प फूलते आँगन में ही , तब अपनेपन के | पूरक
बेटी की आबाज जहाँ पर , सुबह शाम खनके || टेक

हैं विचार बेटी के सुंदर , अनुपम चिन्तन के || अंतरा
ध्यान हमेशा रखती‌ रहती, घर में जन – जन के ||
लक्ष्मी मूरत कहे सुभाषा , भाव यहाँ मन के | पूरक
बेटी की आबाज जहाँ पर , सुबह शाम खनके || टेक

बेटी घर में दिखती हर्षित , रहती है मन से |
नेह जोड़ती प्यारा न्यारा , निज अपनेपन से ||
मोर मोरनी पंछी रहते , हों जैसे वन के | पूरक
बेटी की आबाज जहाँ पर , सुबह शाम खनके || टेक

सुभाष ‌सिंघई

===================================

विष्णुपद छंद , गीतिका , 16- 10
चौपाई चाल यति व चरणांत दीर्घ
स्वर – आकर , चले चलें

जनमन गण का गीत सुहाना ,गाकर चले चलें |
हर अवसर पर शरण तिरंगा, पाकर चले चलें ||

आजादी की कीमत समझें , जाने बलिदानी ,
एक सूत्र में हम ‌ भी सबको , लाकर चले चलें |

आँच वतन पर कभी न आए , रखें सजगता भी ,
रक्षा की खातिर गोली भी , खाकर चले चलें |

शांतिदूत हम कहलाते है , दुनिया भी जाने ,
राष्ट्र धर्म के निर्देशों में , जाकर चले चलें |

गुरुता भारत सदा रही है , का़यम भी रखते ,
मानवता की हम सब खुश्बू , छा कर चले चलें |√

सुभाष सिंघई

विष्णुपद छंद गीतिका , 16- 10 यति दीर्घ
स्वर – आना , पदांत – सीखें

माता शारद अनुकम्पा से , कुछ गाना सीखें |
रख शब्दों में भाव ‌सुहाने , मुस्काना सीखें ||

कविता की सविता से अंदर, भाव दीप लाएँ ,
करुणा की माटी का चंदन , भी लाना सीखें |

दर्पण कहलाती है कविता , शिल्पकार कवि है ,
भावों की गहराई में भी , कुछ जाना सीखें |

कटुता बेलें बढ़ती देखी , हमने दुनियाँ में ,
मिलते हो जब फूल सुहाने , तब पाना सीखे |

कौन बनेगा शंकर जग में , विष भी है निकला ,
विष को अमरत करने की अब , विधि नाना सीखें |√

सुभाष सिंघई

~~~~~~~~

विष्णुपद छंद गीतिका , 16- 10 यति दीर्घ
स्वर – ऊर , पदांत – दूर करो

अपने जज्बातों को यारो , कुछ-कुछ नूर करो |
गलती भी जो निज के अंदर , उनको दूर करो |

मानव गलती का पुतला है , यह भी हम माने ,
पर जितना है खाली अंदर , गुण से पूर करो |

चल जाता है मानव को भी , कितना जहर भरा ,
लेकर साहस की संज्ञा से , उसको चूर करो |

समय रहेगा साथ हमेशा , नव डोरी थामो ,
गलती को भी झुकने यारो , तुम मजबूर करो |

उलझन भी सुलझेगी प्यारे , सबका हल मिलता ,
पहले अपने जज्बातो को ,दिल में शूर करो |

सुभाष सिंघई
~~~~~~~

विष्णुपद छंद , गीतिका , 16 -10 अंत गा

अभिमानी को अपने उर से , दूर जरा रखना |
पर जब सम्मुख आ ही जाए , भाव खरा रखना |

नैतिकता का झंडा पकड़े , रखना सच्चाई ,
दृड़ता से ही अभिमानी को , यहाँ डरा रखना |

माप दंड भी सदा परीक्षा , लेते रहते है ,
अंतरमन का बाग हमेशा , सदा हरा रखना |

जीत आपकी सुयश रहेगी ,अजमाकर देखो ,
स्वाभिमान का‌ अमरत मन में , खूब भरा रखना |

राही बनकर आए जग में , खोजो हमराही ,
खुद अभिमानी की चाहत भी, यहाँ मरा रखना |

अजब – गजब है दुनिया मेला , मानव अलबेले ,
आसमान तक छू लेना पर , पैर धरा रखना |√

सुभाष सिंघई

विष्णुपद छंद गीतिका , 16- 10 यति दीर्घ
स्वर – आर , पदांत – नहीं मिलता

दुनिया में कुछ ऐसे जिनको , प्यार नहीं मिलता |
सम्बंधो की गहराई में , सार नहीं मिलता |

‌सदा भटकते रहते जग में , सुंदर खोज करें ,
पर जुड़ने को अवसर बाला , तार नहीं मिलता |

दर्द हमेशा पीते रहते , घुट घुटकर जीते ,
चार कदम चलने को कोई , यार नहीं मिलता |

कदम – कदम पर धोखा खाते, पर चुप रहते है ,
बहुत खोजने पर भी करने , वार नहीं मिलता |

बाग कहाँ से खिले वहाँ पर, जहाँ चोर माली,
ऐसों की संगत से जीता , हार नहीं मिलता |√

सुभाष सिंघई

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

गीतिका , आधार विष्णु पद छंद
16 – 10 यति चौकल , चरणांत दीर्घ
समांत. स्वर – आने , पदांत- के लिए

आए थे हम महफिल में कुछ ,सुनाने के लिए |
हूजूर खड़े पहले से ही , डराने के लिए‌ ||

खामियाँ भरी हम में कितनी , हूजूर खोजते
दिखते बतलाने को आतुर, जमाने के लिए |

हम भी रहते इस दुनिया में , एक इंसान है ,
वाणी से आगी न लगाओं , जलाने के लिए |

लगा रहे छंदो में वह कुछ ,अरकान छाप को ,
उस्ताद खड़े है अब हिंदी को , पढ़ाने के लिए |

आते है दर प्रेम भाव से, राम-राम करते ,
हमको मजबूर नहीं करना , झुकाने के लिए |

‌सुभाष सिंघई

Language: Hindi
310 Views
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