विषैला बीज ‘ बहिष्कार’।
आतंकवादियों के खिलाफ,
हो जो भी लव जिहाद,
या साइबर से फैलाये अपराध,
बीच समाज में घातक बने बुरा इंसान,
चुपचाप न देख तमाशा,
बीच सड़क में करें अत्याचार,
उठाओ आवाज,
उठाओ आवाज,
घर के बाहर कदमों को बढ़ाओ,
जुट कर करो बहिष्कार।…….(1)
पनपने ना दो कोई विषैला बीज,
ना धर्म संस्कृति से सींचे ऐसे नीच,
हत्यारे , बलात्कारी, माफियाओं का नहीं अगाज,
तुच्छ मानसिकता उभरती समाज में,
बढ़ने ना दो काँटीला वृक्ष ,सुंदर समाज में,
कतर दो पंखो को कातिल होने से पहले,
बदल दो विचार ,
उठाओ आवाज,
नज़रे अपने सदनों में भी बिछा लो,
जुट कर करो बहिष्कार।………(2)
शांति का माहौल बिगड़ने ना दो,
अमन सुकून बिखरने ना दो,
देश दुनियाँ सरहदें खौफ वालों के नहीं है,
रक्त बहाने वालो का कोई स्थान नहीं,
मजबूत ना होने दो हाथों को उनके,
अपनों के बीच रहकर हथियार उठाने ना दे,
शिकंजा कस कर रखो ,
कमर अपनी भी कस लो ,
उठाओ आवाज,
जुट कर करो बहिष्कार।……….(3)
रूप रंग वेशभूषा कोई भी होता,
कहीं भी रहते, गिरगिट सा घुल मिल जाये,
आहिस्ता-आहिस्ता हिंसात्मक होता जाए,
नकारात्मक सोच समाज में बढ़ाये,
उन शिक्षा को दूर करो जो बल दे,
जागो खोल लो अपनी आँखों को,
खिलाफ हो इन कचरो के ,
नींव पड़ने न दो आसपास,
उठाओ आवाज,
जुट कर करो बहिष्कार।……(4)
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।