विषय
विषय
अच्छी आदत
बदलिए न जहां को जनाब खुद को बदलिए।
अपने अहं घमंड को पैरों से कुचलिए।।
जो नीतिगत हो राह पथ प्रयाण कीजिए।
मन कर्म वचन से हृदय संकल्प लीजिए।।
दुष्कर्म त्याग कर सदा सत्कर्म कीजिए।
हर अच्छी आदतों का सदा मर्म समझिए।।
परहित में धन और बल को अपने खर्च कीजिए।
सामर्थ्य के अनुसार सेवा कार्य कीजिए।।
न घात कीजिए न प्रतिघात कीजिए।
संकुचित विचारों का परित्याग कीजिए।।
अच्छी आदत ही तो इंसान की पहचान है।
बुरी आदत हो तो बन जाता नर शैतान है।।
शालीन चाल – ढाल हों, शब्दों को मधुर कीजिए।
वाणी से निकले शब्दों पर सदा ध्यान दीजिए।।
अनुज दूसरों की नक़ल करना छोड़ दीजिए।
कुछ बनकर दिखाना है तो पुरुषार्थ कीजिए तय।।
अपने हृदय को प्रेम का सागर बनाइए।
आनंद प्रेमानंद की अनुभूति पाइए।।
मन में भरा दूषित विचार दूर कीजिए।
आनंद की अनुभूति मन में अपने कीजिए।।
द्वेष ईर्ष्या और घृणा की बेल काटिए।
अपने हृदय में बिल्कुल पनपने न दीजिए।।
वेगवान मन को अपने वश में कीजिए।
चिंतन मनन व्यायाम प्राणायाम कीजिए।।
तन हो निरोगी कांतिमय पर ध्यान दीजिए ।
आहार सन्तुलित तुलित सात्विक ही कीजिए ।।
Rituraj verma