विषय-संसार इक जाल।
विषय-संसार इक जाल।
रचनाकार-प्रिया प्रिंसेस पवाँर
मैं प्रिया सोचती हूँ,
अक्सर सोचती हूँ।
संसार इक जाल है,
जाल की सुलझन खोजती हूँ।
इस जाल में जीवन,
तड़पता है।
पिंजरे में बंद पँछी-सा,
फड़कता है।
कभी सुख मिलता है,
कभी दुःख की बरसात होती है।
सुख की सुबह होती कम,
दुःख की लंबी रात होती है।
संसार इक जाल ही तो है,
जिसमें रिश्तें नहीं समझ आते।
अक्सर होते ऐसे रिश्तें,
जो जाल में और उलझ जाते।
संसार का जाल ऐसा,
जो मोह और दर्द से सना होता है।
इसका हर एक तार,
मोह और दर्द से बना होता है।
मोह मरने नहीं देता,
दर्द जीने नहीं देता।
संसार इक जाल का अज्ञान,
ज्ञान अमृत पीने नहीं देता।
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
स्वरचित,मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
द्वारका मोड़,नई दिल्ली-78