विषय-मन मेरा बावरा।
विषय-मन मेरा बावरा।
शीर्षक-सच को जानकर भी।
विद्या-कविता।
मन मेरा बावरा ही तो है,
जो सबको अपना मानता है।
सच को जानकर भी,
सच को सपना जानता है।
मन मेरा बावरा सबकी मदद करता,
धोखा खाता है।
दूसरों की भलाई की वजह से,
दुःख का मौका पाता है।
इतना जीवन बीत गया,
पर मन सुलझता नहीं।
सच जानकर भी,
दिमाग से उलझता नहीं।
जिंदगी का सच सामने आता है।
मन मेरा बावरा,न उसे अपनाता है।
रिश्तों के संग धोखा भी आता है।
मन बार-बार तड़प जाता है।
जो रुलाते रहें बनकर परिवार।
मिले उनसे सदैव,दुःखों के उपहार।
उनसे भी मन बावरा करता प्यार।
मन मेरा बावरा है; सच जानकर भी,
अंजान रहना चाहता है।
सूखी प्यार की नदियों में,
बहना चाहता है।
न सुनता कभी कोई मेरी,
पर बावरा मन कहना चाहता है।
न रहे जो कभी संग मेरे,
ऐसे अपनों के संग रहना चाहता है।
मन मेरा बावरा ही तो है,
जो ऐसा ही रहना चाहता है।
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
स्वरचित,मौलिक
द्वारका मोड़,नई दिल्ली-78
C R