विषय- पति को जीवन दिया।
विषय- पति को जीवन दिया।
विद्या-कविता।
सीताजी गई रामजी संग वनवास,ये देवी सीता का धर्म था।
पर पति विरह सहना,न देवी उर्मिला का कर्म था।
पति लक्ष्मण जी को दिया वचन,न नीर बहाएगी।
ससुराल में करेगी सेवा सास-ससुर की,
पत्नी-धर्म निभाएगी।
पति विरह,एक पत्नी का
ह्रदय ही जाने।
इतनी विवशता कि इसे ही,जीवन माने।
पति लक्ष्मण के भाग्य की,निंद्रा को स्वीकार किया।
पति को हर पहर सतर्कता का,उपहार दिया।
लक्ष्मण जी की सियाराम सेवा को परिपूर्ण किया।
चौदह वर्ष न सोया जो,
वही मेघनाद को करेगा पराजित।
होगा विजयी,होगी उसकी इंद्रजीत पर जीत।
कह गई सुलोचना भी लक्ष्मण से,न होते विजयी आप।
यदि संग न पत्नी का धर्म ,न होता सती धर्म का ताप।
युद्ध न था ये आपका और मेघनाद का,था यह दो सतीत्व का जाप।
उर्मिला रही नेपथ्य में,अवर्णित,अचर्चित और इतिहास में मूक।
पर न रही किसी कर्तव्य से विमुख,न की कोई भी चूक।
श्रीराम की सेवा का धर्म,यदि न निभा पाते लक्ष्मण।
बन जाता उनका जीवन शून्य,बन जाता जीवन जैसे मरण।
उर्मिला ने सारे सुखों को, जैसे दान किया।
पति को विजय दिलाकर, जीवन दिया!
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
Priya princess Panwar
स्वरचित,मौलिक
द्वारका मोड़,नई दिल्ली-78
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