विषय: दाम्पत्य पर आलेख
विषय: दाम्पत्य पर आलेख
“सम्बन्धो में समरसता जरूरी
जीवन मे दाम्पत्य जरूरी
दोनो मिल करे जीवन यात्रा पूरी
न बने एक दूसरे की मजबूरी”
पति-पत्नी के बीच का ऐसा धर्म संबंध जो कर्तव्य और पवित्रता पर आधारित हो। इस संबंध की डोर जितनी कोमल होती है, उतनी ही मजबूत भी। जिंदगी की असल सार्थकता को जानने के लिये धर्म-अध्यात्म के मार्ग पर दो साथी, सहचरों का प्रतिज्ञा बद्ध होकर आगे बढऩा ही दाम्पत्य या वैवाहिक जीवन का मकसद होता है।एक दूसरे के पूरक बन जाना ही तो दाम्पत्य संबंध होता हैं। न जानते हुए भी एक अटूट बंधन में बंध जाना ही इस रिश्ते की सुंदरता हैं
वास्तव में दाम्पत्य जीवन का वास्तविक सुख तभी प्राप्त हो सकता है जब स्त्री में स्त्रीत्व के गुणों का, तथा पुरुषों में पुरुषोचित गुणों का स्वाभाविक और अबोध विकास हो।दोनो एक दूसरे के ओरक बन जीवन रथ को सारथी की तरह हाँके।इसका अभिप्राय यह नहीं कि उनमें विपरीत गुण बिलकुल ही न हों। इसका आशय केवल इतना ही है कि पुरुष में पुरुषत्व की प्रधानता हो, और स्त्री में स्त्रीत्व की प्रधानता हो। पुरुष में स्त्रीत्व के गुण केवल गौण रूप से, और स्त्री में पुरुषत्व के गुण गौण रूप से रह सकते हैं।इसका मतलब यह बिल्कुल नही है कि दूसरा अपने मन को मार कर रहे बल्कि एक दूसरे की बात का सम्मान करते हुए बीच रास्ता निकाल कर चलना ही सफल जीवन का मूल हैं।वैवाहिक जीवन तो स्वर्ग समान हो जाता हैं जब दोनों पूरक बने तो।इस स्वर्ग को बनाने के लिये पति-पत्नी को अपने कर्त्तव्यों का पालन करना होगा, हम अपने कर्त्तव्यों का पालन करके ही अपने घर को स्वर्ग बना सकते हैं, यह कर्त्तव्य कई प्रकार के होते हैं।दाम्पत्य जीवन का महत्व मनुष्य की अनेकों कोमल एवं उदार भावनाओं, विचारशीलता तथा सद्वृत्तियों पर खड़ा होता है। स्नेह, आत्मीयता, त्याग, उत्सर्ग, सेवा, उदारता आदि अनेकों दैवी गुणों पर दाम्पत्य जीवन की नींव लगती हैं।
पति-पत्नी की परस्पर आलोचना दाम्पत्य जीवन के मधुर सम्बन्धों में खटास पैदा कर देती है। इससे एक दूसरे की आत्मीयता, प्रेम, स्नेहमय आकर्षण समाप्त हो जाता है। कई व्यक्ति अपनी पत्नी की बात-बात पर आलोचना करते हैं। उनके भोजन बनाने, रहन-सहन, ओढ़ने-पहने, बोल-चाल आदि तक में नुक्ताचीनी करते हैं। इससे स्त्रियों पर दूषित प्रभाव पड़ता है। पति की उपस्थिति उन्हें बोझ सी लगती हैं वे उनकी उपेक्षा तक करने लगती है। इसी तरह स्त्रियों द्वारा पति की उपेक्षा आलोचना करना भी इतना ही बुरा है। पुरुषों को अपने काम से थक कर घर आने पर उसे घर में प्रेम एवं उल्लास का समुद्र यदि मिले तो उनकी दिनभर की थकान,परेशानी उसमें घुल जाती है। इसके स्थान पर यदि पत्नी की कटु आलोचना, एवं व्यंग्यबाण का सामना करना पड़े तो उस व्यक्ति की क्या दशा होगी इसका अनुमान तो कोई भुक्तभोगी ही लगा सकता है।दोनो को एक दूसरे की इज्जत करनी होगी तभी जीवन की सार्थकता हैं।तो आइए मिलकर घरहस्थ जीवन की गाड़ी को चलाये।
“दाम्पत्य जीवन तो संसार का यथार्थ
इसको हम मिल चलाये निस्वार्थ
यही हैं जीवन का परमार्थ
बने एक दूजे का अर्थ”
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद