विषय:महिषासुर वध
विषय:महिषासुर वध
महिषासुर असुर आया पृथ्वी पर
रूप बदलता रहता था वो अपनी मर्जी पर
घोर तपस्या जरके उसने पाया विष्णु वर
नही मार सकता था मानव कोई पृथ्वी पर।
घमंड था कि स्त्री नही कर सकती आहत मुझको
निर्बल समझा था वो नारी की शक्ति को
भेजे दूत अपने माँ को ललकारने को
माँ के रूप पर फिदा हुआ वो पागल।
अत्याचार बहुत बढ़ गया था उसका मानव पर
तभी भारी हुंकार माँ ने उसकी मुक्ति पर
सोच माँ ने मुक्त करू अपने भक्तों को
महिषासुर भी होगा इस जीवन से मुक्त।
किया उसने प्रहार माँ पर अपने सिंगो से
भगवती चण्डिका ने रोका प्रहार त्रिशूल से
माँ ने मस्तक धड़ से अलग किया रणभूमि में
जब चक्र लिया माँ ने हाथों में गिर दिया था धड़।
दैत्यराज महिषासुर का अंत हुआ माँ के हाथों से
भगवती महिषासुरमर्दिनी कहलायीं माँ तभी से
देवताओं ने आनंदसूचक जयघोष किया तब
जय माता हम सब पर भी अपनी कृपादृष्टि रखना।
माँ के श्री चरणों मे मेरा वंदन बारम्बार रहे
इस अकिंचन बेटी का श्रीचरणों में शीश रहे
माँ का हाथ सदा ही बेटी के शीश रहे
माँ तेरी ये बेटी ऐसे ही लिखती रहे।
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद