विषय:गुस्सा/आवेग
विषय:गुस्सा/आवेग
आज हम गुस्से पर बात कर रहे है क्या सब को गुस्सा आता है तो इसका जबाब हाँ में ही होगा आजकल गुस्सा ज्यादा बढ़ गया है हर आदमी हर वक्त जैसे गुस्से में ही दिखाई देता है ।प्राकर्तिक जिंदगी जैसे सपना ही हो गई है।आज सब नकली जीवन जी रहे है।आज तो शायद ही कोई ऐसा इंसान मिलेगा जो कहे कि वह बड़ा निश्चिंत है, उसके जीवन में कोई तनाव नहीं है। हर ओर हमें चिढे़ हुए, एक-दूसरे पर खीझते हुए लोग ही ज्यादा मिलते हैं। सड़कों पर आए दिन छोटी-छोटी बातों के लिए एक-दूसरे की जान लेने पर उतारू लोग दिख जाते हैं। ज्यों-ज्यों मनुष्य तरक्की कर रहा है, उसके जीवन में धैर्य कम हो रहा है और गुस्सा बढ़ रहा है।आज छोटे छोटे बच्चे भी इस बीमारी के शिकार होते जा रहे हैं।कारण आज कल के जीवन जीने का तनाव जो आदमी को चिड़चिड़ापन दे रहा है ।हम सब ऐसी ही बीमारी से ग्रसित होते चले जा रहे है।
क्रोध मे व्यक्ति की सोचने समझने की क्षमता लुप्त हो जाती है और वह समाज की परिवार की आने साथ वालो की नजरो से गिर जाता है। क्रोध आने का प्रमुख कारण व्यक्तिगत या सामाजिक अवमानना है। उपेक्षित तिरस्कृत और हेय समझे जाने वाले लोग अधिक क्रोध करते है। क्योंकि वे क्रोध जैसी नकारात्मक गतिविधी के द्वारा भी समाज को दिखाना चाहते है कि उनका भी अस्तित्व है।गुस्सा करना आदत बन गई है इससे छुटकारा पाने के लिए स्वयम पर काम करने जी जरूरत है किसी के कहने मात्र से इसको दूर नही किया जा सकता है।तो आइए हम सब स्वयं ओर काम करे व तनावमुक्त जीवन जीने की शुरुआत करे।इससे अपना भला तो हिग ही साथ ही समाज परिवार का भी उत्थान होगा।
गुस्सा नही तो चाहतों का मुख मोड़ दीजिए
गुस्से को चलो आज ही छोड़ दीजिए
सकारात्मकता का रुख अपनी ओर मोड़ लीजिए
मुस्कुराकर सबसे मुलाकात कीजिए
अपनो के चेहरे पर मुस्कुराहट दीजिए
अब बात बात पर रूठना तो छोड़ ही दीजिए
अपना काम करते हुए दुसरो के काम आइए
चलो आज खुद से ही वादा लीजिए
गुस्से को आने से सदा के लिए दूर कीजिए
प्यार मोहब्बत से बस रहना सिख लीजिए
साथ मिलकर चले यही वादा कीजिए
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद