विषय:उपवास
विषय:उपवास
उपवास मतलब कुछ नही खाना बस आज प्रचलन हैं।
कुछ लोग इसे उपवास भी कहते है। उपवास दो शब्दो से मिलकर बना है – उप और वास । यह दोनों संस्कृत शब्द है। उप का मतलब होता है – नजदीक और वास का मतलब होता है – निवास। इस तरह से उपवास का मतलब हुआ – नजदीक में निवास ।
नजदीक में निवास ! क्या मतलब ?
हम शरीर या मष्तिष्क नहीं है, यह तो क्षणिक और निश्चित नश्वर है। शरीर के नष्ट होने की वस्तु इसके अंदर ही विद्यमान है। धीरे-धीरे समय के साथ, वह अपना काम कर रही है। कोई भी उपाय कर लो, इसको रोका नहीं जा सकता। हम आत्मा है, जो अजर और अमर है, जो शाश्वत है। इसको किसी भी विधि से नष्ट नहीं किया जा सकता, और शरीर को किसी भी विधि से बचाया नहीं जा सकता।
कहते है कि आज मेरा व्रत है। एक मित्र से मैंने पूछा कि किसका व्रत या उपवास है। उसने कहा – फला देवी या देवता का व्रत है। ऐसा करने से क्या होता है? उसने कहा – इससे देवी-देवता प्रसन्न रहते है क्या सच मे हमारे देवी देवता यही चाहते है क्या सच मे कोई माँ-बाप क्यों चाहेंगा की उसका बेटा या बेटी भूखे प्यासे रहे। यदि भूखे प्यासे रहने से देवी-देवता प्रसन्न होते तो, कितने गरीब लोग आज भी भूखे, प्यासे और नंगे सोते है, फिर तो उनको कोई परेशानी ही नहीं होती!
मेरे मतानुसार तो व्रत का मतलब होता है – प्रतिज्ञा। किस चीज़ को किस अमुक दिन को खाना है या करना है, और कितनी मात्रा में खाना है और कितनी बार खाना है या नहीं खाना है, यह व्रत मनुष्य ही ले सकता है, मनुष्य, मनुष्य इसलिए है क्योकि उसमे चुनाव करने की क्षमता है, निर्णय लेने की क्षमता है। मनुष्य के अंदर वह क्षमता है कि अपनी प्रतिज्ञा से अपने मन-मुताबिक काम को अंजाम दे सकता है।
उपवास इसलिए किया जाता है, ताकि हम शारीरिक मांगो से ऊपर उठकर, अपने आत्मा के नज़दीक आ सके, और इसको समझ सके, और हमारे अंदर जो दैविक शक्ति है, उसको हम जागृत कर सके।भूखे रहने से यही भी एहसास होता है कि भूख या प्यास क्या होती है। भोजन और जल की अहमियत समझ में आता है। भूखे और प्यासे सोने वालो की पीड़ा समझ में आती है । इससे मनुष्य भाव बढ़ता है।
उपवास – आत्मा के होने का एहसास के साथ-साथ, शरीर के अशुद्धियो को भी नष्ट कर देती है। यानि उपवास में शारीरिक, मानसिक, आत्मिक, दैविक और सामाजिक स्वस्थता लाने की शक्ति होती है।
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद