#विषकन्या
लालच विषकन्या के जैसा, छोड़ो इससे कैसा प्यार?
साँप गले मन मान रहा हो, वो सोने का कैसा हार?
काम करो परिणाम भूल कर, तारीफ़ करें हँसकर लोग;
आँखों भाता दिल ठुकराता, उस मंज़र का तज दीदार।
तालाब नदी सागर भरते, मानव मन क्यों रहता रिक्त।
दोनों हाथों लूटे जाता, प्यासा फिर भी रहता लिप्त।
भोग विलास नहीं छूटे हैं, शासन सत्ता का उर मोह;
बातें पर्वत जैसी करता, दिल निज का रहता संक्षिप्त।
चाँद-सितारे सूरज चमकें, मानव सेवा चाहें रोज।
गुलशन-गुलशन फूल खिलें हैं, देखें इनको भाए मौज।
मानव तो सबको ही लूटे, हँस संस्कारी बनता नेक;
चाहत किसकी देख बड़ी है, ज्ञानी बनकर इसको खोज।
मोहब्बत भूलो मत प्रीतम, मीठा जीवन समझो सार।
दिल से दिल को जोड़े जाता, अज़ब चुबंक गज़ब संस्कार।
जीवन का मकसद क्या सोचो, चलना पकड़े सच्ची राह;
दिल से आएंगी आवाज़ें, सच्ची हो तब जय-जयकार।
#आर.एस.प्रीतम
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