विश्व जल दिवस ( 22 मार्च )
कल -कल जल -जल ।
ये समा कितना कोमल ।।
जल न रहा तो होगा न कल ।
मर जाएंगे सब जल -जल ।
अपनी धरती अपना अम्बर ।
अब न रहा पल -पल -पल ।
खुशी के दिन जाएंगे ढल -ढल ।
अपनी नदिया है बहती जाए सलल -सलल ।
कोई मरे बिन जल -जल -जल ।
कोई बहाए व्यर्थ हर पल -पल ।
किसी वस्तु के कीमत का पता चलता है तब ।
जब जाती वह हाथ से फिसल ।
कैसी है ये चारो ओर हलचल ।
किसी मे न रहा अभ कोई बल -बल ।
अब हो गई अपनी स्वर्ग सी धरती ।
बेहद धूमिल और मल -मल ।
कल -कल जल -जल ।
ये समा कितना कोमल ।
जल न रहा तो होगा न कल ।
पहले अपनी नदिया बहती थी रंग धवल ।
आज है हालात ऐसे केवल है ये कज्जल ।
आज जो जल का ये हलचल ।
ये सब दिया हमारा फल ।
अब तो जागो चिर निद्रा से अपने को तुम रौंदे ।
जितने भी है रोग बीमारी ।
सबका गंदगी के बलबूते ।
सबका कारण दूषित जल है ।
चाहे हो पीलिया या मलेरिया ।
चाहे किसी की हो जाए क्रिया ।
नही सुधरे तो पुरी दुनिया ।
आधिपत्य होगा रोग का राज ।।
मर जाएंगे एक दिन सब ।
न रहेगा कोई तब हल -हल ।
अभी समय है जागो बंदे ।
क्यो तुम लोग बने हो अंधे ।
अब तो आंखे खोलो ।
मुख से कुछ तो बोलो ।
खुले आसमान मे चद्दर बिछा सोलो ।
अपने धरा को स्वर्ग सा सजा लो ।
अब तो अपनी हठ को छोङो ।
पेङ -पौधो का करो रोपण ।
नही तो ग्लोबल वार्मिंग मे धरा जाएगी फिसल ।
कल -कल जल -जल ।
ये समा कितना कोमल ।
जल न रहा तो होगा न कल ।
मर जाएंगे सब जल -जल ।
?? RJ Anand Prajapati ??