विश्व गुरु भारत
विश्व गुरु भारत
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उतुंग हिमालय से लेकर,
खुशी हो कन्याकुमारी तक।
श्रीरामचंद्र के त्यागों से,
उस छलिया कृष्ण मुरारी तक।
इस वसुंधरा से अम्बर तक,
जो है अथाह वो समंदर तक।
हैं भिन्न मगर हम एक रहें,
भाई चारे में नेक रहें।
अब हाथ नहीं हम छोड़ेंगे,
हम सबके मन मे हर्ष रहे।
जो सदियों से है विश्व गुरु,
सुरभित वो भारत वर्ष रहे।
मुनियों की भू कहलाती है,
जहाँ गंगा नित नहलाती है।
जो सबकी प्यास बुझाती है,
जहाँ परम्परा की थाती है।
जहाँ चंदन जैसी माटी है,
केसर की सुरभित घाटी है।
जहाँ कभी नहीं अवनति बढ़े,
हर कण-कण में उत्कर्ष रहे।
जो सदियों से है विश्व गुरु,
सुरभित वो भारत वर्ष रहे।
जहाँ वीर वीरता के मूरत,
लड़ ही लेते हैं हर सूरत।
अरिदल को धूल चटाते हैं,
हर दिन इतिहास बनाते हैं।
रक्षित है देश जवानों से,
पोषित है प्रजा किसानों से।
सबका मन उज्ज्वल दर्पण है,
जन-जन में सत्य समर्पण है।
अब कभी नहीं हम पीछे हैं,
चाहे निज अँखिया मीचे हैं।
हम हार कभी न मानेंगे,
चाहे कितने संघर्ष रहे।
जो सदियों से है विश्व गुरु,
सुरभित वो भारत वर्ष रहे।
★★★★★★★★★★★
डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”✍️✍️