-विश्व कला दिवस15 अप्रैल
कला की छांव में
कलाकार आजादी का उत्सव मनाता है
कल्पना की भरकर उड़ान
सतरंगी आसमान में दूर तक फैला जाता है
कला ही जीवन है ,जीवन जी कला है
दोनों कला का सपना है ऐसा जग मानता है
कला की तपस्या के ताप से सच की तलाश है
कला की कश्ती में सवार होकर
कलाकार बहुरंगी संसार रचता है
कही कोई शब्द, रंग,लय से
तो कोई अभिनय गीत सुर छंद ताल से
कला की हम जोली करता है
कोई देह की भाषा उसके मर्म को
नाट्य कला में अभिव्यक्त करता है
कोई कथा उपन्यास रच कर
रंगमंच पर अभिनय की छवि साकार करता है
कोई मूर्ति कला से प्रस्तर में
भावों को जीवित करता है
कोई चित्रकला में प्रवीण हो
अपनी कलाओं में रंग भरता है
बोझिल बेस्वाद सी होती जा रही जिंदगी में
कला से उसे आबाद करने की कोशिश करता है
_सीमा गुप्ता, अलवर