विश्वास
रूचि के अनुसार
होती है ‘श्रद्धा’
अस्तु,
श्रद्धा का पृथक्-पृथक् होना
स्वाभाविक है.
देखें-
सात्त्विक की श्रद्धा किसमें होगी ?
निश्चय ही देवों में
‘राजस’ की ‘यक्ष’ में
और राक्षसों/तामसों की
भूत-प्रेतों में होगी
श्रद्धा.
‘आहार’ भी ऐसे ही बंटा है
विभाजित है
जैसी श्रद्धा, वैसा आहार,
यज्ञ, तप और दान भी.
….
‘ऊँ, तत्, सत्’
ब्रह्म के त्रय निर्देश हैं
यज्ञ, तप और दान की क्रियाएं
प्रारम्भ होती हैं
ऊँ के उच्चारण से.
आकांक्षा न रखकर
किया गया यज्ञ, तप व दान
‘तत्’ को निर्देशित करने योग्य
होता है.
‘सत्’ का प्रयोग होता है-
सद्भाव व साधुभाव में.