विश्वास
झूठे सच्चे दांव,यहाँ चलते हैं।
हर पल में विश्वास,यहाँ छलते हैं।।
कपटी बक ही पाठ,ध्यान का गाते।
हंसा सज्जन हाथ,यहाँ मलते हैं।।
गोदामों में माल,भरे बस कैसे।
नीति नियम सच दाम,यहाँ टलते हैं।।
किसे पड़े क्या फर्क,साधना निज हित।
भूखे मन अरमान,यहाँ जलते हैं।।
कल्मष बैठा रोज,चैन की सोचें।
ये पुण्य फल प्रताप,यहाँ ढलते हैं।।
हुआ देखना पाप,स्वप्न बेबस का।
झूठे जन मक्कार,यहाँ पलते हैं।।
शानों-शौकत देख,झूठ से यारी।
सच्चे मन के यार,यहाँ खलते हैं।।
कब तक चलते घाघ,अंत तो होना।
नेकी के प्रभुभोज,यहाँ फलते हैं।।
संतोषी देवी
शाहपुरा जयपुर राजस्थान।