विश्वास सदा विजयी होता है
विश्व के अंतहीन
जनशून्य परिपथ में
मंगल और अमंगल के मध्य
तीव्र वेग से संचलित होता
नि:शब्द , सारथी रहित एक रथ ।
सारथी का न होना
इंगितीकरण है किसी घोर अनिष्ट का
और उस स्वछंद रथ का ,
जो अपनी सीमा से परे
महाविपदा को , समूचे विश्व को
परोसने के लिए आतुर हुआ जा रहा है ।
चहुंओर व्याप्त है
रथ का हृदयविदारक घरघर करता नाद ।
इस सबके बीच
अमंगल की सरसराहट
अदृश्य रथ के
पहियों तले चरमराती मानवता
अस्तित्व को बचाने में रत
प्रयासों की झड़ी लगाता मानव ।
मानव आशान्वित है ,
अपने प्रयासों से
रोक लेगा वह
उस अदृश्य विनाशकारी रथ की गति ।
और फिर
विजय होगी मानव की ।
विजय होगी उसके अथक प्रयास की ।
विजय होगी उसके वेदना से भरे मन की ।
मंगल और अमंगल के मध्य
फिर मंगल होगा ।
मंगल उस जन का ,
मंगल उस मन का ,
मन जो बंदी हुआ-सा
मन जो सहमा-सा
ओट में बैठा ताक रहा है
अनकही पीड़ा लिए ,
कि रोक लेगा वह
उस विनाशक रथ की गति को
अपने दृढ़ निश्चय, संकल्प और विश्वास से ।
और
विश्वास सदा विजयी होता है ।
अशोक सोनी
भिलाई