विश्वास (कविता)
विश्वास पर ही हे प्रभु !,
यह दुनिया है टिकी।
और मेरी विश्वास भरी दृष्टि,
भी तुझ पर है टिकी।
क्योंकि!
मांझी सागर में नाव को,
उतारता है किसी विश्वास पर।
सिपाही शत्रुयों के समक्ष रणक्षेत्र,
में उतरता है किसी विश्वास पर।
भिखारी भीख का कटोरा लिए,
द्वार-द्वार पर जाता है किसी
विश्वास पर।
यहाँ के पक्षी भी अपने घोंसले में,
अपने नन्हे बच्चों को छोड़कर जाता है,
दाना चुगने किसी विश्वास पर।
इसीलिए इन्हीं की तरह,
मैने भी अपनी जीवन रुपी नाव।
इस भवसागर में उतारी है,
इस दम्भी दुनिया के समक्ष।
संघर्षों से लड़ने और विजय पाने हेतु,
किसी विश्वास पर।
और वोह विश्वास मात्र तू है भगवान् !