विश्वास ( कलम की क्रांति )
अजब उदासी है इक मन में,
अजब सा ही खालीपन है।
वो सुन ले बस बात हमारी,
इतनी सी तो तड़पन है।
अब ना करेंगे किसी पर भरोसा ,
इतना तो हम समझे हैं ।
आगे भी अब तुम होगे और ,
आगे भी अब हम होंगे ।
बात बढ़ेगी, नभ में चढ़ेगी
फिर इतिहास लिखायेंगें ।
लोगों के मुंह पर ताला ,
हम ही तो लगवायेंगें ।
आश का सूरज , सुबह उगेगा
फिर उजियारा फैलेगा ।
लहू को अपनी , स्याही बना कर
कलम की क्रांति लाएंगे ।