विश्वासघात
हम भोले मानव न समझे इतनी सी एक बात।
जिन पर हो विश्वास वही करते हैं विष आघात।।
चेहरे पर मुस्कान लिए सब लोग यहांँ मिलते हैं।
मीठी-मीठी बातों से सब लोगों को छलते हैं।।
लोगों की फ़ितरत को समझना अब कितना मुश्किल है।
कौन यहांँ अपना हमदम है कौन यहांँ कातिल है।।
हाथ मिलाते अपनेपन से मन में रखकर बैर।
मतलब के सब रिश्ते सारे क्या अपने क्या ग़ैर।।
एक हाथ से हाथ मिलाकर याराना दिखलाते।
दूजे हाथ छुरी पिस्तौल ये पीछे पीठ छुपाते।।
दुनिया ही मतलबपरस्त है करती है आघात।
वक्त बदलते ही दिखलाते हैं अपनी औकात।।
पहले गले लगाकर प्यार से बाहों में भर लेंगे।
मौका मिलते ही रिश्तों की ये हत्या कर देंगे।।
रिपुदमन झा ‘पिनाकी’
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक