विश्वाश की अंधी दौड़.
विश्वास की अंधी दौड़
दौड़ता है आदमी
जोड़ता है कुछ
सपने,कुछ उम्मीदें
उसके अपनों से
मरोड़ता है तकलीफ
की आंधी को
मन ही मन
टूटने पर भरम,
कोसता है
मसोसता है
भावों की पोटली
नोचता है
कलेजे का धुआं !
कचोटता है
अपनी चोट को
और फिर
लौट पड़ता है
वापस भरोसे
की उसी
#अंधी दौड़ में…..
© priya maithil