विश्ववाद
बढ़ती सभ्यता नित नये मुकाम पर है
लघु मानव केंद्र के नये आयाम पर है !
चहुंओर अमन है चहकता ये चमन है
हे मानवश्रेष्ठ ! तेरे सृजन को नमन है !
उन्नति, उत्कर्ष के उषा जैसे उजाले है
नवयुग अब ज्ञान-विज्ञान के हवाले है !
हटा तेरी नजर पर पड़े जो जाले है
खोल ले अक्ल पर पड़े जो ताले है !
आज बराबरी, समानता ही है प्रथम
गति उत्थान, उन्नति की ना रही थम !
अवसर, आजादी,अभिव्यक्ति, न्याय
सशक्त कर रहे सभ्यता के अध्याय !
साथ-साथ चलने की घड़ी है आई
जग को बचाने चुनौती बड़ी है आई !
शान्ति,समझौता, सहयोग,समझदारी
प्रयास विश्वशान्ति के रहें सब जारी !
एक हो कर समाना है मुख्यधारा में
मिले स्वर विश्वमंगल के जयकारा में !
आचमन कर संकल्प विश्वकल्याण का
लेना होगा नित नव विश्व निर्माण का !
हे मानवश्रेष्ठ! ये तेरा ही उत्तरदायित्व है
आज बचाना हर प्राणी का अस्तित्व है !
~०~
मौलिक एंव स्वरचित : कविता प्रतियोगिता
रचना संख्या-०२.जीवनसवारो,मई २०२३.