जरा ठहरो
लो जी,
ये भी काम हो गया,
आदमी बेहद परेशान,
विश्राम का अभाव,
रोटियों का मोहताज़,
फिर भी
मोबाइल का दीवाना
उसे चलाना,
एक जरुरी काम हो गया.
दुष्परिणाम दिखाई देने लगे है,
अब इसके चलते.
लोग सुधबुध खोने लगे हैं,
डिजिटल इंडिया
कैशलेस हो गया है,
घरेलू बाजार खत्म,
रसोई के स्वाद.
बिगड़ गया.
बीमारियां पांव पसार रही है,
सच पूछो तो दुनिया,
खौफ में जी रही है.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस