विशेषण गीत
लाडला हूँ मैं विशेष्य का,
हर वक्त रहता हूँ उनके संग,
बिना मेरे लगता नहीं,
एक पल भी उनका मन।
मैं हूं उनका दोस्त विशेषण।
आओ मिलकर कर लो मुझसे,
तुम भी थोड़ी जान पहचान ।
फिर ना लगेगी कोई उलझन,
ना रहोगे परीक्षा में परेशान।
बंट कर चार भागों में मैं,
आसानी से समझ में आऊंगा।
गुण-दोष, संख्या, परिमाण,
संकेत, सब मै ही तो बताऊंगा।
गुण-दोष, आकार, रंग
स्वाद, स्पर्श, दशा, गंध
दिशा, स्थान, काल ,
मैं बताता हूं इनकी चाल।
प्रथम भेद के अंतर्गत,
यह सारे ही आ जाते हैं ।
हाल बताकर विशेष्य का
यह गुणवाचक कहलाते हैं।
दुगना , चौगुना ,पौना, आधा,
बताऊं मैं एक निश्चित संख्या ।
किंतु जब संख्या से रहता हूँ अनजान,
कुछ, थोड़े, कई, बहुत, शब्दों से ही ,
चलाता हूँ मैं अपना काम ।
विशेष्य हो निश्चित या हो अनिश्चित,
यदि उसकी संख्या गिनी जाएगी।
तो वह संख्यावाचक के अंतर्गत ही आएगी।
भूलना ना तुम इस बात को,
वरना कर बैठोगे कोई भूल ,
और परीक्षा में अंक भी,
मिलेंगे तुमको पूरे शून्य।
गिन गिन कर आप थक गए ,
चलो नापतौल से काम करें।
किलो, लीटर, मीटर, को भी
हम लेकर अपने साथ चले,
दाल, चावल, नमक, तेल
हम रोज काम में लाते हैं,
किंतु बच्चों क्या हम उनको
गिन गिन कर ही खाते हैं?
तीन किलो चावल ले लो,
उसमें थोड़ा चीनी डालो,
1 लीटर दूध डालकर
थोड़ा सा तुम शहद मिला लो ।
निश्चित हो या अनिश्चित
परिमाण तुम सही रखना,
लो बन गई खीर तुम्हारी ,
चलो अब इसको चखना।
नापतौल से जब तुम घर में, भरोगे अपना राशन ।
सहायक बनकर आऊंगा मैं, परिमाणवाचक विशेषण।
यह कविता अच्छी थी न?
कौन-सी फिल्म देखने चलोगे?
घबरा गए ना ! मेरे इन सवालों से?
शायद तुम नहीं समझे, मेरे इशारों से,
जब यह, वह, कौन, किस, सर्वनाम
संज्ञा से पहले आकर ,उसकी विशेषता बताते हैं ,
तब वह बच्चों , सार्वनामिक विशेषण कहलाते हैं।
लो हो गई ना अब !
मुझसे तुम्हारी जान पहचान ,
अब न होगे परीक्षा में ,
मेरे बच्चे तुम,जरा भी परेशान।