विवेकानंद
भारतवासी वो युवा सन्यासी ।
अनुपम भगवा चोला।
उस
युवा
जूनून गहरा।
अनुपम भगवा चोला ।
मंच पर हुआ प्यारे,भाई, बहनों का उद्घोष ।
भारतवासी वो युवा सन्यासी ।
अनोखा भावों का अर्पण था।
कैसा ये भक्ति समर्पण था ।
देख सब मंत्रमुग्ध,
हुए सब कायल।
वो पुरूषार्थ ही अनोखा था ।
सच में वो युवा था ।
अनुपम भगवा चोला।
चेहरे पर ओज निराला था।
यौवन युवा बह्मचर्य का पहरा
अह्लाद अनूठा था ।
धर्म सम्मेलन का मेला था ।
भारतवासी वो सन्यासी ।
अद्वितीय ओज भाषण में वो जोश।
अनोखा भावों का अर्पण,
कैसा ये भक्ति समर्पण,
भारतवासी वो युवा संन्यासी_ डॉ. सीमा कुमारी, बिहार (भागलपुर ) दिनांक- 11-1-022, स्वरचित रचना जिसे आज प्रकाशित कर रही हूँ ।