विवाह
विवाह
वो कभी सखा
कभी गुरू
कभी प्रेमी
कभी माँ
तो कभी बाप बना है
अग्नि के सात फेरे ले
वो मेरी साँसों में घुला है
दुख सुख में मेरे साथ खड़ा है ।
यूँ तो परंपराओं को टटोलना अच्छा है
नया रचना , सभ्यता है
परन्तु, यह भी सच है
परिवार है , तो समाज है
इतिहास है, भविष्य है
परिवार एक दिन में नहीं बनता
बनता है पीढ़ियों के श्रम से
वह तब भी था
जब हम जंगल में थे
वह आज भी है
जब हम टूट रहे हैं प्रकृति से
पश्चिम ने हमें
नया चिंतन, विज्ञान, तकनीक दिये हैं
पर हमारे सुकून भी तो छीन लिए हैं
पश्चिम से उतना ही लो
जितना हो ज़रूरी
वो सब जो हमें तोड़ता , कुचलता है
है अपनाना नहीं मजबूरी
परिवार सिर्फ़ दो लोगों से नहीं बनता
वह बनता है
बच्चों, माँ- बाप , रिश्तेदारों से भी
माना आज वह जंग खा रहा है
मर्यादाएँ तोड़ , नारी देह को झुलसा रहा है
भाई भाई को डँस रहा है
फिर भी वही है
जिसने हमें अब तक जोड़ा है
हमारी सुरक्षा, प्रेम, समृद्धि को सींचा है
क्यों न हम फिर प्रयत्न करें
चर्चा करें
इसकी मुश्किलों को कम करें
इस कठिन समय में
विवाह को बनाए रखें
मनुष्यों को जोड़े रखें
टूटने पर न जाने हम कितने अकेले हो जायें
तकनीक जीत जाये
और हम हार जायें ।
शशि महाजन- लेखिका