विवाह एक उत्सव
आती जब
परिणय की घड़ी
झूम उठता
मन मयूर
गूंज उठती
ढोल शहनाई
सज जाता घर
तोरण कलश
विवाह है
पवित्र बंधन
करें सम्मान
बेटी का
रखे मान
आये जब
बन कर बहू
समझ हो आपसी
पति पत्नी में
अहं घमंड की
न हो जगह
समर्पण ही है
विवाह संस्कार
गूंजे जब
किलकारी
अंगना
हो जाये
जीवन
जीवन्त
करों मान
बुजुर्गों का
पाये आशीष
उनका
रहेँ सबसे
मिल कर घर में
पाये सम्मान
समाज में
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल