विवाहोत्सव
साधना से सखी सहेलियां होने वाले जीजा जी को लेकर हंसी ठिठोली कर रही है।साधना लज्जा मिश्रित मुस्कान के साथ बोली-धत्। अब चुप रह।
बड़ बोली सहेली अनीता बोली-मैं नहीं चुप रहूंगी। अभी नहीं बोलूंगी,तब कब बोलूंगी। अब तो तुम पिया के साथ जाने वाली हो। अब तुम्हारे साथ बोलने का मौका ही कब मिलेगा?
साधना बोली-हां हां।जितना बोलना है बोल लो।
सभी सहेलियां जोर से हंसने लगी।हा! हा!हा!
आज साधना की हल्दी रश्म है। साधना अध खुली वस्त्र में बैठी हुई है।परिजन महिलाएं सुमंगल गीत गा रही है–शुभे,हे शुभे।आइ मंगल के दिनमा।शुभे ,हे शुभे।साथ ही साथ साधना के देह में अपटन (पिसी हल्दी) भी लगा रही है। साधना को गुदगदी हो रही है।
सहेलियां हंस रही है–हा।हा।हा। साधना लाज से दोहरी हो रही है। गालों पर लालिमा भी दौड़ रही है।
मधवापुर के बड़े किसान जगदीश प्रसाद के दो मंजिला मकान को सजाया जा रहा है। बिजली की लड़ियां टांगी जा रही है।विजली वाला शुभ विवाह का फ्रेम मुख्य द्वार पर लगाया जा रहा। टेंट वाला शादी का मंडप तैयार कर रहा है। कैटरीन वाला मिठाईयां तैयार कर रहा है। सभी लोग किसी न किसी काम में व्यस्त हैं।
आखिर क्यों न हो? साधना, जगदीश प्रसाद की बड़ी बेटी जो है। साधना को एक बहन आराधना और दो भाई अजीत और आजाद है। साधना, रामकृष्ण महाविद्यालय मधुबनी से बीए कर चुकी हैं। आराधना उसी कालेज में बीए फाइनल में पढ़ रही है। अजीत गांव के ही इंटर कालेज में पढ रहा है तो आजाद गांव के ही उच्च विद्यालय में दसम् वर्ग का छात्र है।
कल्ह साधना का विवाह है। बारात बेनीपट्टी के बड़े किसान अजय प्रसाद के यहां से आने वाला है।अजय प्रसाद के बड़े इंजीनियर पुत्र जय कुमार से साधना का विवाह तय है।
आज साधना का विवाह है। संध्या का समय है।बारात के गाड़ियों की आवाज सुनाई पड़ रही है। गाड़ियों के काफिले गांव के सीमा पर पहुंच चुकी है। दरवाजे पर जगदीश प्रसाद अपने कुटुंबियों के साथ फूलों की माला लेकर बराती की स्वागत में खडे़ हैं।डीजे पर जोर आवाज में गाना बज रहा है। छोटे छोटे बच्चे गाना के धुन पर नाच रहे हैं।बड़े बुजुर्ग अपनी हंसी रोक नहीं पा रहे हैं।सब लोग खूशी में झूम रहे हैं।
साधना को सहेलियां सजा रही है। हंसी ठिठोलियां सहेलियां कर रही है। साधना की सहेलियां श्रृंगार कक्ष को भीतर से बंद कर रखी है। खिड़कियां खुली हुई है।मंद मंद हवाये कक्ष में आ रही है। सभी श्रृंगार लगभग पूरी हो चुकी है। काजल लगाना बांकी है। तभी नौकरानी बोली—– बारात दरवाजे पर आ चुकी है। चलिए चलिए।दुल्हा परीक्षण के लिए। सभी सहेलियां साधना को छोड़ श्रृंगार कक्ष से बाहर निकल जाती है। कोई सहेली किबाड़ बंद कर सिकहर चढा देती है।साधना की मां भी सभी कुटुम्ब महिलाओं के साथ मंगलगीत गाती दरवाजे पर चली जाती है। अंग्रेजी बाजा और डीजे की आवाज में किसी की आवाज सुनाई नहीं पड़ रही है।
साधना श्रृंगार कक्ष को अंदर से बंद कर लेती है।
साधना दीप जलाती है और उसके लौ में कजरौटे में काजल सेंकती है। अचानक साड़ी की पल्लू नीचे सरक कर जलती दीप पर गिर जाती है।पल्लू में आग पकड़ लेता है।पूरे ट्रैनिंग की साड़ी मे आग फैल जाता है। साधना चिल्ला रही है। किबाड़ को पीट रही है।लेकिन कोई उसकी आवाज को सुन नहीं रहा है। आवाज डी जे और अंग्रेजी बाजा की आवाज में गुम हो जाती है। साधना धम से ज़मीन पर गिर जाती है और प्राण पखेरू उड़ जाते हैं।
इस बीच नौकरानी किसी काम से साधना के श्रृंगार कक्ष के सामने से गुजरती है। कपड़े जलने की गंध से अपनी नाक को बंद करती हुई, खिड़की से अंदर झाकती है तो सन्न रह जाती है। साधना जली हुई साड़ी में धरती पर पड़ी हुई हैं। नौकरानी बड़ी चतुराई से जाकर,चुपचाप साधना की मां के कान में बोली–मालकिन। साधना आपको बुला रही है। साधना की मां कुछ दूसरे ही सोच में पड़ जाती है। आखिर साधना हमें क्यो बुला रही है? साधना की मां चुपचाप श्रृंगार कक्ष तक पंहुचती है। खिड़की से नजारा देख कर और वक्त की नजाकत को समझकर आंसू की घूट पी कर नौकरानी से साधना की मां बोली–
चुपचाप मालिक को बुला लाओ। नौकरानी दरवाजे के भीड़ में से खोजकर मालिक को चुपचाप अपनी ओर आने की इशारा करती है।
जगदीश प्रसाद भीड़ को चीरते हुए नौकरानी के पास आते हैं । जगदीश प्रसाद बोले–क्या बात है? नौकरानी बोली-मालकिन बुलाती है। कोई आवश्यक बात करनी है।
बड़ी तेजी से जगदीश प्रसाद साधना के श्रृंगार कक्ष की ओर बढ़ते हैं। यहां की स्थति को देखकर वे किंकर्तव्यविमूढ़ हो जातें हैं। फिर अपने खास लुहार को बुलवाकर किबाड़ खुलवाते है।पति-पत्नी थोड़ी देर रोते हैं। नौकरानी भी सुबक रही है। अचानक फिर जगदीश प्रसाद बोले-किसी को रोना नहीं है। अपने सभी कुटुंबियों को बुलाकर बोले– किसी को भी रोना धोना नहीं है। बारातियों को पता नहीं चलना चाहिए। साधना को यही रहने दो।लाख विपत्ती आये उत्सव रोके नहीं जाते हैं। हर हाल में उत्सव मनाये जाते हैं। आज हमें हर हाल में विवाहोत्सव मनाने है।
सभी लोग आवाक होकर सून रहे हैं।
जगदीश प्रसाद बोले–अब साधना न सही। अब उसकी छोटी बहन आराधना के साथ विवाहोत्सव सम्पन्न किया जायेगा।जाइये आप सब आराधना को सजाये।
आराधना भी अपने कुल और समाज की इज्जत के लिए विवाह करने के लिए तैयार हो गई। सभी सहेलियों ने खुशी मन से आराधना को सजाया।
बरातियों के आव भगत में कोई कमी नहीं की गई। सभी खुश दिखाई दे रहे थे।
शुभ रात्रि में विवाह के मड़वे पर इंजीनियर दुल्हा जयकुमार ने दुल्हिन आराधना की मांग में सिंदूर भर दिया। महिलाएं मंगल गान गा रही थी।शुभे।हे शुभे।
संहेलियां खिल खिला रही थी।
बरात को विदा कर दिया गया।समधी जगदीश प्रसाद ने समधी अजय प्रसाद के कानो में सब घटना बता दिया।अंत में दामाद जय कुमार को भी बता दिया।समधी और दामाद ने हास अश्रुपूरित नेत्रों सहित दोनो हाथ जोड़ दिए। और बोले जाइए अगला कदम उठाए। विवाहोत्सव सम्पन्न हो गया।
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प्रतियोगिता हेतु।