विवाहिता (डॉ० आशा)
पूर्वाभास –
नारी विमर्श से सम्बंधित यह कहानी, विवाह नामक संस्था पर किया गया एक तीखा व्यंग्य है l विवाह नामक संस्था को कटघरे में लाकर बहुत से सवाल पाठक के मन में उत्पन्न करती पाठक की प्रतिक्रिया जानना चाहती है l हो सकता है कईं लोग इस बात को सिरे से ख़ारिज करें लेकिन यह कथा नारी यथार्थ के भयावह सत्य से जुड़ी है जिसकी गूँज आजकल अख़बारों की सुर्ख़ियों में देखने को मिल जाएगी l लेखिका पाठकों के दृष्टिकोण की अभिलाषिणी है l
कहानी आरंभ –
विवाहिता (स्वरचित एवं मौलिक रचना) ©®
-डॉ0 आशा
एक दिन अचानक ही गूगल पर न्यूज पढ़ते-पढ़ते एक खबर(१२मार्च२०२१) आँखों के सामने आकर मुझे 20 साल पीछे ले गई । मेरा मन-तन-आत्मा सिहर से गए। आँखों के आगे बहुत से हादसे फिल्म की रील की तरह तेज़ी से घूम गए। ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे प्राण खींच लिए हों। इसी तरह की एक घटना का ज़िक्र मेरे पड़ोस में रहने वालीं एक महिला ने किया था । मैं काम के सिलसिले में अक्सर बाहर ही रहती थी। कॉलोनी में किसी से इतना मेलजोल नहीं था। लेकिन एक सुबह जब अपने सभी कामों से फ़ुर्सत पाकर मैं अपने दिन को गर्म चाय के कप के साथ शुरू करना चाहती थी। घर में शांति थी। आस-पास दरख्तों पर कभी तोता तो कभी चिड़ियाँ बोलते हुए सुबह के नए-नए संदेश देते थे । कभी-कभी बीच-बीच में कोयल भी कूकने लगती थी।
मैंने जैसे ही गरमागरम मसाले वाली चाय का प्याला अपने मुँह से लगाया ही था कि दरवाजे की घंटी लगातार बजने लगी। मेरी तंद्रा भंग हो गई। मैंने चाय की प्याली को वापस प्लेट में रखा और दरवाज़े की ओर लपकी कि कौन इतना बेचैन होकर घंटी पर सितम ढहा रहा है। दरवाज़ा खोल कर देखा तो सामने मेरी पड़ोसन श्रीमती तमन्ना बदहवास-सी खड़ी दिखीं।
मैं अपलक उनको देखती रही और वो बिना कुछ बोले मेरे ड्रॉइंग रूम में सुबकती हुई दाखिल हो गईं। मैं एकटक उनको देखे जा रही थी कि आज से पहले तो कभी उन्होंने इस तरह का कोई व्यवहार नहीं किया । चेहरे से सौम्य और व्यवहार से शालीन दिखने वाली ये महिला अभी दो साल पहले ही तो हमारे पड़ोस में रहने आई थीं। नाप-तोल कर बोलतीं । मुस्करा कर जवाब देती। और कभी मैंने उन्हें माथे पर सिलवट डाले नहीं देखा था। पति के लिए तो उनके चेहरे पर हमेशा प्रेम ही दिखाई देता था। महिला पंजाबी थीं और उनके पति भी एक आदर्श पति की ही तरह दीखते थे। कभी भी उनकी ऊँची आवाज़ किसी ने भी ना सुनी थी। लेकिन आज ऐसा क्या हो गया था कि वो बदहवास दिखाई दे रही थीं। चेहरे का रंग उड़ा हुआ था। होंठों पर चोट के से निशाँ दिखाई दे रहे थे और उनकी सुंदर गोरी गर्दन पर कुछ गहरे लाल रंग के से निशान थे। जैसे किसी कीट- पतंगे ने काट लिया हो। कुछ चाल में भी कंपन दिख रहा था। मैं कुछ नहीं बोली और उनके सामने के सोफे पर बैठते ही मैंने मेज़ पर रखे पानी के गिलास को उनके सामने बढ़ा दिया। उन्होंने कुछ नहीं कहा। अश्रुपूरित नेत्रों से चुपचाप पानी पीकर उन्हें भी पी जाने की कोशिश की l
मैंने तमन्ना के नॉर्मल होने का इंतजार किया। और धीरे-धीरे अपनी ठंडी होती चाय को दो-तीन घूंट में बेमन से गटक लिया। अब मैंने सुबकती हुई तमन्ना से हिम्मत कर के पूछने के लिए उसके घुटने पर हौले से दबाया कि उसकी ऐसी हालत क्यूं है । मेरा ऐसा करना था कि वो फूट-फूट के रोने लगी और ज़मीन पर बैठ गई। मैं उसकी ऐसी हालत देख कर सकते में आ गई कि इसको ये क्या हो गया है l वह बहुत देर तक ऐसे ही रोती रही। मैं भी उसके पास ज़मीन पर बैठ गई तो वो मेरे गले से लग कर और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। काफ़ी देर बाद जब वो नॉर्मल हुई तो मैंने उससे ज़ोर देकर पूछा कि क्या हुआ जो वो इतना रो रही है। उसके पति की तबीयत तो सही है या घर में सब ठीक तो है। उसने कहा कि घर में सब ठीक है लेकिन जिसको ठीक होना चाहिए बस वही ठीक नहीं है। मैं उसकी बातों को समझ पाने में खुद को अक्षम महसूस कर रही थी कि तभी उसने बताना शुरू किया –
उसका (तमन्ना) प्रेम विवाह था l दोनों अलग-अलग माहौल में पले-बढ़े थे l प्रेम विवाह होने के कारण उन्हें शुरुआत में ही बहुत से विरोध सहने पड़े थे l लेकिन दोनों ने एक-दूसरे का साथ दिया l घरवालों ने भी बाद में उनके प्रेम को समझते हुए विरोध करना बंद कर दिया l लड़का दिखने में साँवले रंग और छरहरे बदन का अच्छा-खासा नौजवान था l तमन्ना की माँ को वह पसंद न था l शायद माँ का दिल आने वाली मुसीबतों को पहले ही पहचान लेता है l जो भी उनको देखता वो देखता रह जाता क्योंकि दोनों में एक संतुलन-सा था l कभी किसी को ये महसूस ही नहीं हुआ कि उस साँवले-सलोने चेहरे के पीछे का मन भी काला ही है l मुस्कराहट से कितना भोला और भला लगता था l किसी ने सही कहा है दिल देखना चाहिए चेहरे से कुछ अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता l प्रेम होना और प्रेममय हो जाना इन दोनों में बहुत अंतर है l एक सांसारिक है तो दूसरा अलौकिक l
विवाह के बाद दोनों अब साथ रहने लगे थे l शादी के कुछ हफ़्तों के बाद से ही उसके जीवन में एक बेचैनी एक पीड़ा ने घर कर लिया l कुछ ऐसी बातें हमारे जीवन में अनायास ही घटने लगती हैं जिनका अनुमान पहले से लगाना किसी के लिए भी असंभव है l जिस दिन तमन्ना अपने पति के घर आई उसी दिन से उसे वह बदला-बदला-सा लगा l जिन आँखों में उसने अपने लिए प्रेम देखा था अब वहीँ उसे एक अजीब-सा वहशियानापन दिखाई देने लगा l पर वह कुछ बोली नहीं पहले की तरह ही वह निश्छल मन से अपने घर और पति पर अपना प्रेम लुटाने लगी l वह दोनों ही तो एक दूसरे के साथ अपनी नयी दुनिया बसाकर हमेशा-हमेशा के लिए एक दूसरे में खो जाना चाहते थे l
बड़े-बूढ़े कहते हैं कि किसी की असलियत एक दिन पता चल जाती है और किसी-किसी की तो जीवनभर साथ रहने के बाद भी पता नहीं चल पाती l कुछ बातें हमें विवाह से पहले ज्ञात नहीं होती, भले ही हमने प्रेम विवाह ही क्यों न किया हो l तमन्ना अपने अतीत में खो गई और बताने लगी –
मैं तो बहुत पढ़ी-लिखी थी फिर मैं ये क्यों नहीं समझ पायी कि हर तस्वीर के दो हिस्से होते हैं l मैंने तो एक भी ठीक से नहीं देखा l या ये कहूँ कि जो वो दिखाना चाहता था वही मैंने देखा l मैंने जो सहा उसको आज कहना भी मेरे लिए खुद के लिए भी शर्मिंदगी की बात है कि मैंने कभी आवाज़ क्यों नहीं उठाई? आज मेरी मुस्कान, मेरा आत्मविश्वास केवल दिखावा मात्र है ! मुझे उस समय क्या काठ मार गया था जो मैं गूँगी गुड़िया बन सब सहती रही l मैं कोई खिलौना थोड़े ही थी जो जैसा वो चाहता था, खेलता रहता था l लेकिन आज ये सब बातें करने का क्या फ़ायदा जो होना था वो तो होता ही रहा था l वह जब मेरे करीब आता तो प्रेम और अपनेपन के स्थान पर उसकी आँखों में मुझे एक हैवानियत ही दिखाई देती l वो हमेशा हँसते हुए अश्लील फितरे कसता, उसके होंठ और भी फ़ैल जाते l उसके लाल होंठ और लाल-लाल आँखें उसके साँवले चेहरे को और भी शैतानी बना देते l
कई बार मुझे ऐसा लगता कि मैं अपने पवित्र घर में नहीं किसी बाज़ार में बैठी हूँ और आने जाने वाले मनचले मुझ पर गन्दी भद्दी फ़ब्तियाँ कसते हुए अपना दिल बहला रहे हैं l ये वहशियानापन मैंने केवल किस्सों और कहानियों में ही पढ़ा था लेकिन आज वही सब मुझे झेलना पड़ेगा मुझे ये बात सपने में भी नहीं आई थी l मिलन के सुखद क्षणों में जब एक स्त्री-पुरुष नितांत आत्मीय हो जाते हैं एक-दूसरे में समर्पित हो जाते हैं ऐसे क्षणों में उसके भीतर का दानव जाग जाता था l प्रेम करने वाला वो व्यक्ति क्या इतना घिनौना हो सकता है, सोचकर ही मैं परेशान हो जाती थी l अक्सर जब भी वो मेरे पास आता तो कुछ ऐसा कहता कि मेरी नज़रें खुद-ब-खुद शर्मसार हो जातीं l मुझे छूता तो उसका स्पर्श अनजाना लगता l मन में सुकून की बजाए चीखें कौंधने लगतीं l अक्सर प्रेम के नितांत कोमल क्षणों में वह कुछ अप्रत्याशित कह जाता या माँग कर बैठता जिसे सुनकर ही पैरों के नीचे से ज़मीन निकल जाती l मना करने पर वह उसी तरह एक फ़ितरा कस देता कि कैसेट हो या …दोनों ओर से ही बजाई जाती हैं और ऐसा कहते ही उसके होंठ फ़ैल जाते, आँखों में एक वहशी चमक आ जाती और लार टपकने लगती l उसको उस समय देख कर भी घिन्न आती l नज़रें खुद-ब-खुद शर्म से झुक जातीं और औरत होना उस समय शर्मसार कर जाता l मैं सोचने लगती कि इसकी माँ ने इसको कैसी परवरिश दी है l ऐसा बोलते हुए उसको क्यूँ शर्म नहीं आती l
तमन्ना नज़रें झुकाए बिना मेरी ओर देखे अपनी आपबीती सुनाए जा रही थी और मैं मूक श्रोता बने बिना हिलेडुले उसको सुनती जा रही थी l उसने आगे बताना शुरू किया l मैं अक्सर दिनभर की थकी होने के कारण सिर रखते ही सो जाती और वह देर रात तक टेलीविज़न देखता रहता l हमारे बीच एक सामान्य पति-पत्नी की तरह कोई बात न होती l
मैंने हिम्मत करके पूछना शुरू किया l “तमन्ना, मैंने तो तुम लोगों को जब भी एक साथ देखा है बिलकुल खुश देखा है l एक आदर्श दंपत्ति की तरह आप लोग हमेशा जब भी मिले ऐसा कभी लगा ही नहीं कि आप दोनों में इतना सब कुछ असामान्य है !” तमन्ना ने जवाब दिया, “ हम दोनों में नहीं, केवल उसमें l मैं तो सामान्य जीवन ही जीना चाहती थी l” मैं चुप रही l उसने आगे बताना शुरू किया l ये अपमान मेरे लिए अब आम बात हो चुकी थी l मैं उसको ये बात कई बार समझा चुकी थी कि इस तरह की भाषा और हरकतें मुझे पसंद नहीं l
तमन्ना ने मुझ से पूछा, “क्या कभी आपके पति ने आपके साथ कुछ ऐसा किया है जिससे आपकी आत्मा छलनी हो गई हो ?” मैं एकदम चौंक गई l मैंने जवाब दिया, “नहीं l” उसने जवाब दिया, “ऐसा मेरे साथ तीन बार हो चुका है !” मैं सकते में आ गई l उसने आगे कहना शुरू किया l उसको हम बिस्तर होने के लिए मना करना यानी मेरे बाहर शारीरिक सम्बन्ध होना l उस रात मैं आराम से सोयी हुई थी l कुछ सरसराहट-सी होने लगी l मेरी नींद टूट गई l वैसे भी उससे शादी करने के बाद से कभी सुकून से सो कर देखा ही नहीं था l मैं सोना चाहती थी पर उसने मुझे खींचना शुरू कर दिया l मैं पलंग से वापिस उठ जाना चाहती थी लेकिन ऐसा न कर सकी l उसने मुझे पकड़कर जोर से धक्का दिया और मैं खुद को संभाल नहीं सकी l मैं आधी पलंग पर थी और मेरे पैर पलंग से नीचे लटके हुए थे l वह आक्रामक स्थिति में था l उसका इस ओर ध्यान ही नहीं था कि मेरी कमर पर चोट भी लग सकती है l परंतु वो तो उस समय मुझे सिर्फ़ अजनबी जैसा लग रहा था l वह उसी हालत में मुझ पर काबिज़ हो गया l मैंने अपनी पूरी ताकत लगाकर उसके सीने पर जोर से धक्का मारा और मैं झटके से उठ खड़ी हुई वह अभी अधलेटा था lवह पर्वत था और मैं कमज़ोर सिंहपर्णी के पौधे के समान कोमल, उसका क्या बिगाड़ सकती थी l फिर भी मैं उसको धकेल पायी ये मेरे लिए खुद को हैरान कर देने वाली बात थी लेकिन इन लम्हों में उसके अन्दर चीते सी फुर्ती दिखाई दी l उसने खुद को एक पल के आधे हिस्से में ही संभल लिया था l मैं उठ कर बाहर वाले कमरे में भाग जाना चाहती थी लेकिन उसने मेरे बालों को जोर से पकड़कर खींच लिया और उस झटके से मैं पीछे की ओर खींचती चली गई l खिंचते बालों का दर्द मेरी गर्दन को तोड़े दे रहा था l
मैं खुद को रोक न सकी और फिर से तमन्ना से एक सवाल कर बैठी , “तुमने किसी को आवाज़ क्यों नहीं दी ? चिल्लाई क्यों नहीं ?” वह एक तीखी मुस्कान के साथ तिरछी मुस्कराहट लिए बोली,” हमारे संस्कार हमें ऐसा करने की इजाज़त कहाँ देते हैं ? पुरुष को सब कुछ सौंप दिया जाता है लेकिन जब हमारी बात आती है तो समाज क्या कहेगा ? पड़ोसी क्या कहेंगे ? तुम्हारी बात पर यकीन कौन करेगा ऐसा सब समझा दिया जाता है ? हमारी जड़ों में धीमा ज़हर तो दिया जाता है लेकिन वो हमें विषकन्या न बनाकर पंगु बना देता है और मर्यादा के नाम पर हम मूक बधिर हो केवल यातना सहते रहते हैं !” मेरी रीढ़ की हड्डी जैसे अकड़ गई थी l वहाँ एक स्पंदन-सा होने लगा था l हाथ और पैर जैसे जड़ हो गए थे l तमन्ना ने फिर से बोलना शुरू किया –
बाल खींचते हुए मुझे वह वापिस अंदर वाले कमरे में ले गया और ज़ोर से पलंग पर धक्का दिया l अब वो पहले से ज़्यादा ताकतवर नज़र आने लगा था l शायद वो समझ चुका था कि आज बात आसानी से बनने वाली नहीं है l उसने मुझे काबू में करने के लिए मेरे पैरों को पकड़ा और घुमाता हुआ ज़ोर से पलंग पर पटक दिया l मेरी कमर के निचले हिस्से में ज़ोर से दर्द हुआ और मेरी कराह मेरे मुंह में दब कर रह गई l वह ऐसा क्यों कर रहा था ? उसको क्या हो गया था ? मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी ? बस ऐसा लग रहा था की कोई राक्षस मासूम छोने को आज मार कर ही दम लेगा l उसकी हाथापाई बढ़ती ही जा रही थी ताकि मेरे अंदर इतनी भी जान न बचे कि मैं उसका विरोध कर पाऊँ l रात आधी से ज्यादा बीत चुकी थी l 2 या 3 बजे होंगे शायद l वो समय जब दुनिया पूरी तरह से नींद के आगोश में डूबी दूसरी दुनिया में मीठे सपने लेते घूम रही होती है वहीँ मैं अपने सुंदर सपनों को भयानक होते हुए खुली आँखों से देख रही थी l एक तरफ़ मैं अपने जन्म-जन्मांतर के साथ में चुने गए साथी को अपने ही प्रेम को छिन्न -भिन्न करते हुए देख रही थी और भीतरी रूप से अपने मन के कांच से भी महीन द्तुकडे होते हुए देख रही थी कि क्या वह वही पुरुष है जिसके लिए मैंने न तो समाज देखा और न ही अपना भविष्य l मैंने उसको खुद के लिए कम्पलीट मैन समझा था l परफेक्ट मैच l लेकिन आज उसकी इन हरकतों से मैं खुद के ही निर्णय पर शर्मसार थी l मेरी कमर का दर्द अबतक मेरे फेंफड़ों में पहुँच चुका था लेकिन उसको इससे कुछ भी लेना देना नहीं था l वो तो मुझ पर और दबाव बना रहा था l वह मुझ पर औंधे मुंह गिर गया ताकि उसके शरीर के बोझ से मैं दब जाऊं और विरोध न कर पाऊँ l अब उसने मेरे दोनों हाथों की मुट्ठियों को खोल कर अपनी उँगलियों को उन में फंसना शुरू कर दिया और ज़ोर से कसकर भींच दिया मेरे हाथ उसके हाथों से छोटे थे उसने उन्हें ऊपर की तरफ़ खींच लिया अब तो मुझ में जान ही नहीं बची थी l मेरे खुले बाल उसके हाथों की उँगलियों में उलझ गए थे और खिंच रहे थे मुझे दर्द हो रहा था लेकिन वो सुन ही नहीं रहा था जैसे उसके अंदर का धड़कता दिल आज पत्थर का हो चुका था l मैं करहा रही थी उसने ध्यान ही नहीं दिया l मैंने हाथ छुडाने की कोशिश की उसने और कस के हाथों को जकड लिया और मेरे होठों पर अपने दाँतो से ज़ोर से काटने लगा l साथ ही राक्षसी अट्ठाहस सा करता हुआ पूछने लगा , “दर्द हो रहा है न ? दर्द में मज़ा आता है न ? मेरी सिर्फ़ आँखें ही अपने जज़्बात आँसुओं से बता रही थीं l आँखों के किनारों से आँसू ढुलक रहे थे लेकिन उसका इस तरफ़ कोई ध्यान नहीं था क्यूंकि आज आँसू पोंछने वाले हाथ तो आँसू दे रहे थे l
आलिंगन एक सुखद एहसास होता है l साँसों का साँसों में घुल जाना एक मधुरता का संबल होता है l स्पर्श आत्मा का परम तत्व है l जो भीतर तक शांति प्रदान करता है लेकिन ऐसा स्पर्श जिसमें सुरक्षा, समर्पण, आत्मीयता का भाव हो l कुछ न कहने पर भी प्रत्येक चेष्टा में एक सार तत्व विद्यमान हो लेकिन जो उस रात हुआ वो क्या था ? अभी तक उसके मुँह में में ही मैं उसके दंत प्रहार का दंश झेल रही थी जैसे सिंह के जबड़ों में मृग शावक की कोमल ग्रीवा अंतिम साँसे गिन रही होती है l मैं छटपटाने लगी l उसने अपनी गिरफ़्त इतनी मज़बूत कर ली थी मानो नन्हा सा पक्षी सैय्याद के हाथों में छात्पता रहा हो l उसने एक हाथ छोड़ दिया और अब वो मेरे तन को ढकने वाले कपड़ों की ओर बड़ा l उसने अपने दूसरे हाथ से मेरे कपड़े नोचने शुरू कर दिए बिना ये सोचे कि वो फट रहे थे l आज मेरी मर्यादा की हिफ़ाज़त करने वाले हाथ ही मुझे अनावृत कर रहे थे l अब उसने अपना शरीर खोलना शुरू कर दिया l और अपने पौरुषता के प्रतीक चिह्न को बड़ी ही सख्ती से फैलाना शुरू कर दिया l अपने क्रूर हाथों से वह मुझे ऐसे चोट पहुँचा रहा था जैसे कोई बेदर्दी किसी फूल को मसल देता है l मेरी गर्दन, मेरी मातृत्व का प्रतीक मेरे उरोज उसने इस तरह से आहात कर दिए जैसे नागफनी के काँटे मेरे हर अंग में चुभो दिए गए हों l उसके दाँतों के स्नेह चिह्न मुझ पर अपनी मोहर लगा दानवी अट्ठाहस करते से लग रहे थे l उसमें एक बिजली सी फुर्ती आ गई थी और वह और भी अधिक तेज़ी से मुझे पीड़ा देने में सुख महसूस कर रहा था l शरीर को इस प्रकार से फेंट रहा था जैसे धरती पर कोई पत्थर के सिलबट्टे से कोमल पत्तियों को पीस रहा हो l उसके सीने की रगड़ ऐसा ही एहसास दे रही थी l जिस सीने पर कभी मैंने अपने सिर को रख उसकी धड़कन सुनी थी एक संगीत का अनुभव किया था आज वही मेरी धड़कन रोक रहा था l जब उसका उफ़ान ख़त्म हुआ तो उससे बहुत पहले मैं फ़ना हो चुकी थी l वह मुझ पर से अपना बोझ हटा चुका था लेकिन अब मैं एक ज़िन्दा लाश भर रह गई थी l वह बिस्तर के दूसरी ओर लुढ़क गया और मुझे धक्का देकर दूसरे बिस्तर पर जाने के लिए कह कर ऐसे सो गया जैसे कुछ हुआ ही न हो l और मैं अपने तार – तार अस्तित्व को समेटने की कोशिश में बिखर गई l