विवश मातृत्व
जिस प्रकार से कुमाऊं गढ़वाल के पहाड़ों को देवभूमि माना जाता है मैं इस बात से सहमत हूं और वहां के निवासी भी वास्तव में मुझे अधिक सरल एवं निश्चल प्रतीत हुए वहां इतने विस्तृत क्षेत्र एवं घने जंगलों के बाद भी भौगोलिक स्थिति कुछ ऐसी है कि वहां पर अपराध नहीं छुप सकते तथा उन क्षेत्रों में उनके आने-जाने के मार्ग भी बोतल की गर्दन में प्रवेश मार्ग की तरह होते हैं जहां से बच निकालना अत्यंत कठिन होता है । उस दिन सुबह पहाड़ों की सुरम्मय वादियों के बीच अस्पताल में एक पटवारी महोदय एक सफेद कपड़े में सील मोहर बंद छोटी सी पोटली लेकर खड़े थे और उन्होंने उस पोटली में बंद एक अज्ञात नवजात मृत शिशु के पोस्टमार्टम के लिए प्रार्थना पत्र दिया था जो कि किसी खाई में वहां के स्थानीय निवासियों को पड़ा मिला था । उस दिन मेरी ड्यूटी होने के कारण मुझे ही यह कार्य संपादित करना था । मेरे मन में पहला प्रश्न तो यह उठा कि किसी के जन्मते ही भला कौन कंस की तरह उसे मारने के लिए इंतजार कर रहा था ।
या फिर ऐसी कौन सी परिस्थितियां हो गई कि उसकी जननी उससे अलग हो गई । यह संसार इतना खराब हो गया कि किसी को जन्म लेते ही विदा होना पड़े । मैंने उस दिन उसका शव विच्छेदन करवा कर और जिसमें उसकी मृत्यु का कारण उसके सिर के पीछे आई चोट के कारण जो संभवत उसे खाई में चट्टान के ऊपर फेंकने से आई होगी लिखकर पटवारी महोदय को विदा किया ।
दो दिन बाद फिर वही पटवारी जी करीब 6 – 7 अन्य स्थानीय निवासियों के साथ चुटैल होकर अपने मेडिकोलीगल परीक्षण कराने के लिए अस्पताल आये । उन लोगों का कहना था कि बीती मध्य रात्रि में जब वे लोग अपने घरों में सो रहे थे तो अचानक 7 – 8 अज्ञात व्यक्तियों ने उनके पर हमला कर दिया और उन्हें लाठी-डंडों , घूंसा – लात , बेल्ट आदि से खूब पीटा और धमकाया कि हम लोगों ने उस नवजात शिशु का पोस्टमार्टम क्यों करवाया या फिर उन ग्रामीणों को इस बात के लिए पीटा की उन लोगों ने पटवारी को शव विच्छेदन कराने के लिए क्यों दबाव डाला , और वे लोग यह कहते हुए कि हम लोग अभी यहीं ठहरे हैं और अब अगर तुम लोगों ने इस मामले में आगे कोई भी कार्यवाही की तो हम तुम्हें देख लेंगे । क्योंकि यह घटना सुदूर दुर्गम क्षेत्र की थी तथा आवागमन के साधन भी दुर्लभ थे अतः आते आते उनकी ताजा चोटों पर खून सूख कर जम चुका था । वे सब भूखे प्यासे मुरझाए से डरे सहमे परीक्षण कराने के लिए एक लाइन में बैठ गए । उस दिन फिर मेरी ही ड्यूटी होने के कारण मैंने उनका परीक्षण कर रिपोर्ट देकर उन्हें विदा किया ।
अब इस घटना के 2 दिन बाद फिर से वही पटवारी जी अपने साथ 7 – 8 चुटैल शहरी गबरु जवान लोगों को जो कि जींस , शर्ट आदि पहने हुए आधुनिक वेशभूषा में थे उनको आई चोटों का मुआयना करवाने के लिये मेरे सामने प्रतुत हुए । इस बार ऐसा लगता था कि पीटने वालों ने ना केवल उनके घड़ी , चश्मा , ट्रांजिस्टर आदि को तोड़ा था वरन उनके हाथ पैर और शरीर की भी जमकर तुड़या की थी । वे सब चुटैल कराहते , लगड़ाते हुए अस्पताल में अपना मुआयना कराने आए एक लाइन में बैठे थे । साथ आए पटवारी जी ने बताया कि ये लोग दिल्ली में रहते हैं और यह शायद इन्हीं लोगों ने 2 दिन पूर्व उनके एवम स्थानीय लोगों के साथ मारपीट की थी और इसके बाद पश्चात ये लोग वहीं आसपास के किसी छोटे से ढाबे नुमा होटल में ठहरे हुए थे जिसका पता स्थानीय निवासियों ने लगा लिया था और कल रात कुछ अज्ञात स्थानीय ग्रामीणों ने हल्ला बोल कर इन लोगों की तुड़ाई कर दी । वे बेचारे अपनी चोटों के कारण ठीक से चल फिर , उठ बैठ नहीं पा रहे थे , लगता था ग्रामीणों ने जमकर अपनी भड़ास उन पर निकाल दी थी । अब वे सब लाइन में बैठकर कराहते हुए हाथ – पैर जोड़ कर प्रार्थना कर रहे थे कि वे सब निर्दोष हैं और उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया है । फिर मैंने उनको आई चोटों का परीक्षण कर उन्हें विदा किया । उस दिन फिर यह बात आई गई हो गई और मैं अन्य व्यस्तताओं में जुट गया ।
अब इस पिछली घटना के 2 दिन पश्चात वही पटवारी जी फिर एक महिला को लेकर उसके चिकित्सीय परीक्षण के लिए इस प्रश्न के साथ आवेदन प्रस्तुत किया कि क्या हाल ही में उसने किसी बच्चे को जन्म दिया है ?
क्योंकि पिछली तीन बार की घटनाओं में संयोग से वह मेरे ही पास आता था अतः उसने पहले वह पत्र मेरे सामने रखा और उस महिला को साथ लाकर मेरे सम्मुख खड़ा कर दिया । उस पटवारी ने मुझे यह भी बताया की पहले यह महिला दिल्ली में रहती थी और कुछ दिनों पहले ही इस इलाके मैं रहने आई थी तथा संभवत इसी ने दिल्ली फोन करके अपने कुछ साथियों को बुलवाया था जिन्होंने कि उस पटवारी और स्थानीय ग्रामीणों को उस नवजात शिशु का शव विच्छेदन करवाने के कारण पीटा था । उस पटवारी ने मुझे व्यक्तिगत रूप से अपनी इच्छा जताते हुए यह भी कहा साहब मैं तो इस लफड़े मैं पढ़ने वाला ही नहीं था पर इन्हीं गांव वालों ने मुझे बाध्य कर आगे कार्यवाही करने के लिए उकसाया था । वह महिला शांत भाव से सकुचाई हुई खड़ी थी ।
इस परिस्थिति ने मुझे विचलित कर दिया था । मैंने पटवारी को बताया की अब इसमें मेरा कोई काम नहीं है और इसका परीक्षण और रिपोर्ट किसी महिला चिकित्सक के द्वारा की जाए गी । हालांकि अपनी सहयोगिनी महिला चिकित्सक से मुझे उस महिला की परीक्षण की रिपोर्ट का नतीजा पता चल सकता था पर अनेकों कारणों से जिसका उल्लेख मैं यहां नहीं करना चाहूंगा मैंने उनसे उसकी चिकित्सीय रिपोर्ट के बारे में कुछ नहीं पूछा । वैसे भी आगे जो मैं कहना चाहूंगा उस पर उसकी चिकित्सीय रिपोर्ट क्या थी इसका कोई फर्क नहीं पड़ता है । कुछ अनुत्तरित प्रश्नों ने मुझे विचलित कर दिया था ।
इस घमंडी दंभी पुरुष प्रधान समाज में बच्चे को उसके पिता के नाम से जाना जाता है । पुरुषों का वर्चस्व है । क्यों नहीं उस शिशु के पिता को जो इस प्रकृति के सृजनात्मक कार्य में उस स्त्री के साथ संयुक्त रूप से संलग्न था अब अपने आपको सगर्व सबके सामने अपने आपको प्रस्तुत करना चाहिए था और उस शिशु के पितृत्व का भार उठाते हुए उस नारी की लज्जा को आवरण देना चाहिए था ?
क्यों उस नारी को चिकित्सीय परीक्षण के लिए प्रस्तुत किया गया ? क्या वह बेचारी अपने स्वास्थ्य परीक्षण के लिए स्वैच्छिक सहमति से सामने आई थी ? क्या यह उसकी निजता का उल्लंघन और उसका अपमान नहीं था ?
इससे अच्छा तो महाभारत कालीन मातृ प्रधान व्यवस्था थी जिसमें जिसमें सन्तति को मां के नाम से जाना जाता था एवं कुंती पुत्र जैसे संबोधन इस बात को प्रमाणित करते हैं । हां अगर ऐसा हो सका तो फिर कोई मां किसी भी परिस्थिति में अपने मातृत्व से इस प्रकार अलग नहीं होगी और कोई शिशु इस प्रकार कूड़े के ढेर या चट्टान पर नहीं पड़ा दिखेगा ।
मैं नहीं समझता कि इस प्राणी जगत में कोई भी मां अपने शिशु का या अंडे बच्चे का इस प्रकार अपने ह्रदय से परित्याग करना चाहेगी ।
इसके लिए दोषी हमारा समाज है । जब तक शिशु के जन्म के लिए वैवाहिक बंधन को नैसर्गिक आवश्यकता माना जाएगा , जबकि प्रकृति की ओर से ऐसा कोई जैविक बंधन निष्पादित नहीं किया गया है , तब तक ऐसे शिशु कूड़े के ढेर पर पड़े दिखते रहेंगे और मांए उन्हें अस्पतालों में छोड़ कर भाग जाएं गी । इस प्राणी जगत में कोई भी मां अपने नवजात शिशु को जन्मते ही उसका परित्याग हृदय से नहीं करना चाहेगी।
उस महिला को इस कानूनी चिकित्सीय परीक्षण की प्रतिक्रिया से गुज़ारना और उसे इसके लिए सार्वजनिक रूप से अपनी जांच करवाने के लिए प्रस्तुत करना ही अपने आप में उस महिला के लिए यह लांछन स्वरूप जिंदगी भर के लिये उसे कलंकित करता रहेगा ।
क्यों नहीं पहले उस शिशु का डीएनए प्राप्त कर उसके जन्म के बोध का दायित्व उसके पिता को जताया जाए और पहले उसे दंडित किया जाए । हम सभी ने देखा कि किस प्रकार एक माननीय जी जो मुख्यमंत्री और राज्यपाल के जैसे पदों पर आसीन रहे ने अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में भी अपने सगे पुत्र को अपना नाम देने के लिए नकारते रहे जब तक कि आधुनिक तकनीक के द्वारा उनका डीएनए जांच कर उनका पितृत्व साबित कर उन्हें कानून की दृष्टि में विवश नहीं कर दिया गया । सरकारी व्यवस्थाओं में ऐसे अस्पतालों में जहां प्रायः साधारण खून और पेशाब की जांच के लिए पैथोलॉजिस्ट तक नहीं है वहां ऐसे डीएनए परीक्षण की उम्मीद करना व्यर्थ है । पर उस अबला नारी को इस तरह सरेआम प्रदर्शित करना आसान है ।
मैं उन तमाम अविवाहित नायिकाओं को बधाई देता हूं , धन्य हैं वो जिन्होंने कि अपने अविवाहित मातृत्व को स्वीकारा और उसे अपना संरक्षण दिया और पाल पोस कर बढ़ा किया । और धिक्कार है उन कृतघ्न पुरुषों को जो जगत के इस सर्जनात्मक कार्य में समान रूप से भागीदार एवम संलग्न होने के बाद भी कायरता से अपने नाम का योगदान देकर अपनी ज़िम्मेदारी निभाने से मुकर गये ।
धन्य हैं वे माताएं जो किसी ऐसे परित्यक्त शिशु को अपना कर उसे अपना ममत्व प्रदान कर उसे जीने का एक पुनीत अवसर प्रदान करतीं हैं ।
मैं समाज में किसी ऐसी व्यवस्था की कामना करूंगा जिसमें जन्म देने के लिए किसी मां को समाज मे अपमानित या कलंकित न होना पड़े और किसी मां के विवष मातृत्व को अपनी ममता का जन्म देने के साथ ही गला ना घोंटना पढ़े ।