विवश प्रश्नचिन्ह ???
कौन सुनेगा यहाँ,किस-किस से कहूं मैं ?
हर ओर घिरा हूं कैसे-कैसे चक्रव्यूह में ?
कितना झेलूगा और कितना सहू मैं ?
कितनी हड्डिया गलाऊ, बहाऊ लहू मैं ?
इस धार-बयार में और कितना बहू मैं ?
नाक तक आया पानी,चुप कैसे रहूं मैं ?
कौन देखेगा किस-किस को दिखाऊं मैं ?
मछली ऑख पे कैसे ऑख टिकाऊ मैं ?
ये कोरा पन्ना किस-किस से लिखाऊं मैं ?
ये अधजल गगरी,क्या सीखूं,सीखाऊं मैं ?
बौना हूं तेरे सामने कैसे गले लगाऊ मैं ?
अकड़ तोड़ देती, कैसे शीश झुकाऊं मैं ?
कौन कहेगा किस-किस से कहलाऊं मैं ?
ये मौन कमजोरी नही,किसे समझाऊं मैं?
मतिमूढं मरीचिका में मन भटकाऊ मैं ?
फिर क्यों दीवार में सिर पटकाऊ मैं ?
मन मैला तो तन को क्यों नहलाऊं मैं ?
रूठें मनाने किस-किस को बहलाऊ मैं ?
चुप्पी तोड़ने किस-किस को सहलाऊ मैं ?
ये तेरे सिले होंठों को कैसे खुलवाऊ मैं ?
कौन करेगा किस-किस से कराऊं मैं ?
इस पसरे आलस को कैसे हराऊ मैं ?
यम-नियम से किस-किस को डराऊ मैं ?
किंकर्तव्यविमूढ़ हूं,व्यर्थ बुद्धि चराऊ मैं?
इस कालरात्रि में कैसे दिया जलाऊ मैं ?
घुप्पअंधेरे संभवामि युगे-युगे,कहाँ पाऊ मैं ?
~०~
मौलिक एंव स्वरचित : कविता प्रतियोगिता
रचना संख्या-२२.जीवनसवारो,जून २०२३.