विलक्षणताओं से भरी मेघालय की खासी पहाड़ी
आज मुझे यहाँ रहते लगभग तीन वर्ष पूरे हो चुके हैं ।यहाँ की प्राकृतिक छटा से अब अंतर्मन का गहरा रिस्ता सा बन गया है। पहाड़,नदियाँ, झरनों का कलरव एवं हरियाली की मेखला यह सब जिंदगी के हिस्से बन गए हैं। इसके पूर्व तो यह सब किताबों में पढ़ी कल्पना मात्र बातें थीं । आज जब मेघालय प्रान्त की पश्चिमी खासी पहाड़ी पर रहते हुए मुझे तीन साल पूरे होने वाले हैं ,तो यहाँ की कुछ- कुछ बातों से भिज्ञ हो गया हूं।दिन प्रति दिन कुछ नयी चीजें कुछ नई बातें देखने और सुनने को मिलती हैं।
पूर्णतः पहाड़ और पथरीली जमीन होने के कारण यहां के लोगों का सारा समय भोजन जुटाने में ही व्यतीत होता है ।यहां के लोग पूर्णतः मांसाहारी हैं,मछली पकड़ना शिकार करना मुख्य काम है और ऐसा करना इनकी मजबूरी भी है ।
आधुनिक चमक दमक की दुनिया से दूर प्रकृति की गोद में बसी खासी पहाड़ी पूरी तरह से स्वर्ग का प्रतिमान लगती है चारों तरफ़ चीड़ के बड़े – बड़े वृच्छों से आच्छादित गगनचुम्बी पर्वत श्रृंखलाएं ईश्वरीय सत्ता को साक्षात प्रतिबिम्बित करती हैं।यहाँ की शीतल बयार में इतनी निर्मलता है कि उसका अहसास मात्र तन मन को आनंदित और पवित्र कर देता है । विरल जनसंख्या पूरे पहाड़ों में फैली है। शाम के समय पहाड़ों पर घरों में टिमटिमाते बल्ब ऐसे लगते हैं कि मानों दीपोत्सव के लिए दिये जलाकर रखे गए हों। सायंकालीन यह दृश्य अंतर्मन को आल्हादित करने वाला होता है ।
एशिया महाद्वीप का सबसे स्वच्छ गांव भी हमारे यहां से कुछ दूरी पर ही स्थित है जिससे आप अंदाजा लगा सकते है कि यहाँ का वातावरण कितना साफ और स्वच्छ होगा। यहाँ के लोगों के घर लकड़ी के बने होते हैं जो अतिवृष्टि या भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदा को ध्यान में रखकर बनाए जाते है , क्योकि ऐसी आपदाएं यहां की आम बात हैं। लोगों का प्रकृति प्रेम उनके घरों की साज सज्जा और फुलवारी से ही देखते बनता है।
यहाँ के लोग बहुत ही सरल स्वभाव के और ईमानदार होते हैं। विगत तीन वर्षों में मैंने चोरी डाका या किसी प्रकार के अपराध जैसी कोई घटना नहीं सुनी ,शायद यह सभी चीजें विकास,आधुनिकता एवं जनसंख्या की बढ़ोत्तरी के साथ ही पनपती है जो यहाँ पर न के बराबर है ।
यहां का मुख्य त्योहार क्रिसमस है जो बड़े धूम धाम से लगभग एक सप्ताह तक मनाया जाता है। इसके अलावा त्योहारों की कमी देखने को मिलती है।
अगर रीति रिवाजों की बात करें तो यहाँ के रीति रिवाज रहन सहन सब कुछ हमसे भिन्न है एक बार तो ऐसा लगता है कि हम अपने देश में ही हैं या कहीं बाहर।
यहाँ पर मातृ सत्तात्मक परिवार प्रणाली पायी जाती है। यह जानकर कुछ देर के लिए तो मैं अचंभित हो गया ।क्योंकि मातृ सत्तात्मक और पित्रसत्तात्मक परिवार प्रणाली मैन तो केवल किताबों में ही पढ़ा था। जिज्ञासावश जब मैंने जानकारी इकठ्ठी की तो पता चला कि यहां विवाह में लड़के की जगह पर लड़की बारात लेकर जाती है और लड़के को अपनी पत्नी के साथ जीवन भर के लिए अपने पिता का घर छोड़कर जाना पड़ता है।परिवार में बेटियों के क्रमशः विवाह के बाद नवीन दम्पति को अपना घर अलग बनाना होता है और जो सबसे छोटी लड़की होती है वह और उसका पति पिता के घर का असली वारिस बनता है यहां पर प्रायः एक पिता की लगभग दस से बारह संताने होती हैं। लड़की असली वारिस होने के कारण उसके जन्म पर खुशियां द्विगुणित हो जाती हैं।
सामान्यतया घर से लेकर बाजार तक का सारा काम महिलाएं ही करती हैं पुरूष केवल न के बराबर सहायता मात्र करते हैं।
इतनी सब अच्छाइयों के बीच एक विडंबना भी है जो मानस पटल को अंदर तक झकझोर देती है वह है यहाँ का बाल विवाह!
या फिर आज के फैशन युग की भाषा में कहा जाने वाला लिविंग रिलेशन !
सामान्यतः चौदह से पंद्रह वर्ष की उम्र में यहां की हर एक लड़की मां बन जाती है जो उसके जीवन और भविष्य दोनो के लिए घातक है और यह सब शायद शिक्षा की कमी के कारण व्याप्त है। यहां पर प्रायः देखने को मिलता है कि किसी की पहली पीढ़ी या किसी की दूसरी पीढ़ी ही स्कूल जा रही है उससे पहले शिक्षा न के बराबर थी और बाल विवाह जैसी कुप्रथा इसी अशिक्षा की देन है लेकिन आज हमारी सरकार इस ओर बड़े कदम उठा रही है दूरस्थ घनघोर जंगलों में भी विद्यालयों को व्यवस्था की जा रही है जिसका एक ज्वलंत उदाहरण हमारा आवासीय विद्यालय भी है जहां पर नियमित रुप से निवास करते हुए बच्चे शिक्षा की मुख्य धारा से जुड़कर अपनी दिशा और दशा में परिवर्तन कर रहे हैं।
अमित मिश्रा
जवाहर नवोदय विद्यालय
पश्चिमी खासी पहाड़ी मेघालय